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जैन पूजाजलि देह अपावन जड पुदगल है तू चेतन चिद्रूपी ।
शुबुद्ध अविरुद्ध निरजन नित्य अनूप अरुपी ।। एक शतक अरु अर्ध शतक योजन लम्बे चौड़े जिन धाम । पौन शतक योजन ऊँचे हैं भव्य गगनचुम्बी सुललाम ॥१३॥ उत्तम से आधे मध्यम इनसे आधे जघन्य विस्तार । इन्द्र चढाते ध्वजा सुपूजन इन्द्रध्वज करते सुखकार ।।१४।। उच्च शिखर पर दश चिन्हो के ध्वज फहराते हैं हर्षित । अष्ट द्रव्य. : देवोपम चरण चढाते हैं कर मस्तक नत ।।१५।। माला, सिह, कमल, गज, अकुश, गरुड, मयूर, वृषभ के चित्र । चकवा चकवी,हसचिन्ह शोभित बहुरगी ध्वजापवित्र ॥१६॥ मेरु मन्दिरो पर माला का चिन्ह ध्वजाओ में होता । विजयारध की सर्वध्वजाओ मे तो वृषभ चिन्ह होता ॥१७॥ जबूशाल्मलितरु के ध्वज पर अकुश चिन्ह सरल होत । मानुषोत्तर इष्वाकारो के ध्वज गज शोभित होते ॥१८॥ वक्षारो के जिन मन्दिर पर गरुड चिन्ह के ध्वज होते । गजदतो के चैत्यालय पर सिह विभूषित ध्वज होते ।।१९।। सर्वकुलाचल के जिन गृह पर कमल चिह के ध्वज होते । नदीश्वर मे चकवा चकवी चिन्ह सुशोभित ध्वज होते ।।२०।। कुण्डलवर गिरि मे मयूर के चिन्ह विभूषित ध्वज होते । द्वीप रुचकवर गिरि मन्दिर पर हसचिन्ह के ध्वज होते।।२१।। महाध्वजा अरू क्षुद्र ध्वजाये पचवर्ण की होती है । जिन पूजन करने वालो के सर्व पाय मल धोती है।॥२२॥ सुर मुरागना इन्द्र शची प्रभु गुण गाते हर्षाते हैं । नाच नाचकर अरिहतो के यश की गाथा गाते हैं।।२३।। गीत नृत्य वाद्यो से झकृत हो जाते है तीनो लोक । जय जयकार गृजता नभ मे पुलकित हो जाता सुरलोक ।।२४।।