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जैन पूजाजलि जड को जड समझे बिन चेतन ज्ञान नहीं होता ।
पूर्ण शुद्धता हुए बिना कल्याण नहीं होता ।। जिन भावों के प्रभु चरु ले पांचों परमेष्ठी उर लाऊँ। क्षुधा रोग की ज्वाल बुझाऊँदेवशास्त्र गुरु गुणगाऊँ ।।तीसचौबीसी. 1५।।
ॐ ह्री श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि निज भावो के दीप उजा पाँचो परमेष्ठी उर लाऊँ। मोह तिमिर अज्ञान नशाऊँदेव शास्त्र गुरु गुणगाऊँ । तीसचौबीसी ॥६॥ ॐ ह्रीं श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । निज भावो की धूप चढा पाँचो परमेष्ठी उर लाऊँ । अष्ट कर्म को नष्टकमै देव शास्त्र गुरु गुण गाऊँ तीसचौबीसी ।।७।। ॐ ह्री श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो अष्टकर्मविध्वन्सनायधूप नि । निज भावो के फल लेकर पाचो परमेष्ठी उर लाऊँ । उत्तम महामोक्ष फल पाऊँदेवशास्त्र गुरु गुण गाऊँ । तीसचौबीसी ॥८॥ ॐ ह्री श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो महा मोक्षफलप्राप्ताय फल नि । निज भावो के अर्घ बना पाचो परमेष्ठी उर लाऊँ। अविनाशी अनर्घ पद पाऊँदेव शास्त्र गुरु गुण गाऊँ। तीसचौबीसी ।।९।। ॐ ह्रीं श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो अनर्घपद प्राप्ताय अयं नि ।
जयमाला प्रभु पूजन जिन देव की नित नव मगल होय । तीन लोक की सपदा भी चरणों को धोय ।।९।। श्री अरिहत सिद्ध आचार्योपाध्याय मुनिवर वदन । देवशास्त्र गुरु के चरणो मे सविनय बार-बार नमन ॥२॥ भरतैरावत ढाई द्वीप की तीस चौबीसी का अर्चन । विद्यमान जिन बीस विदेही सीमंधर आदिक वन्दन ॥३॥ तीन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम जिनगृह असंख्यात वंदन । सर्व सिद्धि मंगल के दाता सब सिखें को करूं नमन