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जैन पूजांजलि कर्म बंध का रुप जानकर शुद्धतम का ज्ञान करो ।
पाप पुण्य की प्रकृति विनाशो निज स्वरूप का ध्यान करो ।। कोटिशिला रेवातट पावागिरि द्रोणागिरि को वन्दन । रेशंदीगिरि कुण्डलगिरि मंदारगिरि पटना वन्दन ॥१७॥ श्री सिद्धवरकूट गुणावा मथुरा राजगृही वन्दन । मुक्तागिरि पोदनपुर आदि सिद्ध क्षेत्रों को वन्दन १८॥ चिपुलाचल वैभार स्वर्णगिरि उदयरत्नगिरि को वन्दन । अहिच्छेन की ज्ञान भूमि को ज्ञानप्राप्ति हित करनमन ॥१९॥ ढाई द्वीप के सिद्ध क्षेत्र अरु अतिशय क्षेत्रो को वन्दन । मन वचन काया शुद्धि पूर्वक सब तीर्थों को करूँ नमन।।२०।। कल्पद्रुम सर्वतोभद्र इन्द्रध्वज नित्यमह महापूजन । अष्टान्हिका, आदिपवों पर विविध विधान महा पूजन ।।२१।। मध्य लोक के चार शतक अट्ठावन जिन मन्दिर वदन । अधो लोक के सात करोड़ बहात्तर लाख भवन वन्दन ॥२२॥ ऊर्ध्व लाख चौरासी, सतानवै सहस तेईस वन्दन । ज्योतिष व्यतर भवन असंख्यो जिन प्रतिमाये करूँ नमन ॥२३॥ गौतम गणधर स्वामि सुधर्मा जम्बूस्वामी श्रीधर थन । श्री देशभूषण कुलभूषण इन्द्रजीत अरु कुम्भकरण ।॥२४॥ रामचन्द्र हनुमान नील महानील गवय गवाक्ष्य वन्दन । मुनि सुडील सुग्रीव आदि रावण के सुत मुनिवर वन्दन।।२५।। वरदत्तराय अरु सागरदत्त श्री गुरदत्तादि वन्दन । अर्जुन भीम युधिष्ठिर पाडव द्रविड देश के नृप वन्दन ।।२६।। पचमहा ऋषिवरदत्तादि नग अनगकुमार नमन । स्वर्णभद्र आदिक मुनि चारो सेठ सुदर्शन को वन्दन ।।२७।। शम्बु प्रद्युम्नकुमार और अनिरुद्धकुमार आदि वन्दन । रामचन्द्र सुत लव मदनाकुश लाड देश के नृप वदन ॥२८॥
वन भीम युधिष्ठिा नग अनगको वन्दन