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जैन पूजाबलि राग आग में जल जल तूने कष्ट अनत उठाए हैं ।
पाव शुभाशुभ के बंधन में आस् सदा बहाए है ।। मैं मुकुटबद्ध तो नहीं किन्तु शुभ भावबद्ध हूँ याचक हूँ । शिव सुख की आकाक्षा मन मे भोगों से दूर अमाचक हूँ । मैं यथा शक्ति निज भावो की वसुद्रव्य सजाकर लाया हूँ। सर्वतोभद्र पूजन करने जिन देव शरण में आया हूँ ॥ ॐ ही सर्वतोभद्र चतुर्मुखजिन अत्र अवतर अवतर सवौषट अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ, अत्रमम् सन्निहितो भव भव वषद् । मै एक शुद्ध हूँ चेतन हूँ सवीज्यमान गुणशाली हूँ। प्रभु जन्म मरण के नाश हेतु लाया पूजन की थाली हूँ । सर्वतोभद्र पूजन करके यह जीवन सफल बनाआ । जिनराज चतुर्मुख दर्शन कर मैं सम्यक्दर्शन पाऊँग ।।१।।
ॐ ही श्री सर्वतोभद्रचतुर्मुखजिनेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि मैं निर्विकल्प हूँ शीतल हूँ मैं परम शात गुणाशाली हूँ। ससार ताप क्षय करने को लाया पूजन की थाली हूँ।।सर्वतोभद्र ॥२॥ ॐ ही श्री सर्वतोभद्र चतुर्मुखजिनेभ्यो ससारतापविनाशनायचन्दन नि मै अविनश्वर हूँ अविकल हूँ अक्षय अनन्त गुण शाली हूँ। अक्षय पद प्राप्ति हेतु स्वामी लाया पूजन की थाली हूँ॥सर्वतोभद्र।।३।। ॐ ही श्री सर्वतोभद्र चतुर्मुखजिनेभ्यो अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि मै हू स्वतन्त्र निष्काम पूर्ण सिद्धो सम वैभवशाली हैं। इस काम शत्रु के नाश हेतु लाया पूजन की थाली हूँ ।।सर्वतोभद्र ।।४।। ॐ ह्रीं श्री सर्वतोभद्र चयतुर्मुखजिनेभ्यो काम बाण विध्वसनाय पुष्प नि मै परम तृप्त पै परम शक्ति सम्पन्न परम गुणशाली हूँ। अब क्षुधारोग के नाश हेतु लाया पूजन की थाली हूँ ॥सर्वतोभद्र ।।५।। ॐ ही श्री सर्वतोभद्र चतुर्मुखजिनेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि मैं स्वपर प्रकाशक ज्योति पुज मैं परमज्ञान गुणशाली हूँ। मोहाधकार भ्रमनाश हेतु लाया पूजन की थाली हूँ ।।सर्वतोभद्र ।।६।। ॐ ह्री श्री सर्वतोभद्र चतुर्मुखजिनेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपनि