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श्री भक्तामरस्तोत्र पूजन तन प्रमाण अपचार कथन है लोकप्रमाण कथल भूतार्थ ।
जो भूतार्थ माश्रय लेता वह पाता शिवमय परमार्थ ।। काम व्यथा संहारक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वन्दन । ' मैं कन्दर्प दर्पहरने को सहज पुण्य करता अर्पण । ऋषभ. I४| ॐ हीं श्री वातावजिनेन्द्राय कामवाण विश्वसनाय पुष्पं नि । क्षुधा रोग के नाशक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वन्दन । अब अनादि क्षुधा मिटाऊँ प्रभु नैवेद्य करूँ अर्पण ऋषभ. ।।५।। ॐ हीं भी वृषभनायजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि. । स्वपर प्रकाशक ज्ञान ज्योतिमय आदिनाथ प्रभु को बदन । मोह तिमिर अज्ञान हटाने दीपक चरणों मे अर्पण । ऋषभ ॥६॥ * ही श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि । कर्म व्यथा के नाशक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वदन । अष्ट कर्म विध्वस हेतु भावों की धूप करूँ अर्पण । ऋषभ ।७।। ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप नि । नित्य निरंजन महामोक्ष पति आदिनाथ प्रभु को क्दन । मोक्ष सुफल पाने को स्वामी चरणों मे फल है अर्पण ऋिषभ ॥८॥ ॐ ही श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय महा मोक्षफल प्राप्तये फल नि । जल गधाक्षत पुष्प सचरु दीप धूप फल अर्घ समन । पद अनर्घ पाने को स्वामी चरणो सादर अर्पण ऋषभ ।।९।। ॐ ह्री श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय अनर्धपद प्राप्तये अय नि ।
जयमाला वृषभाकित जिनराज पद वन्दू बारम्बार ।
वृषभदेव परमात्मा परम सौख्य आधार ॥१॥ भक्तामर की यशोपताका फहराते हैं साधु भक्त जन । भाव पूर्वक पाठ मात्र से कट जाते सब सकट तत्क्षण ॥२॥ भक्तामर रच मानतुंग ने निजपरका कल्याण किया था । अड़तालीस काव्यरचनाकर शुभअमरत्व प्रदान किया था ॥३॥ नृपकारा से मुक्त हुए मुनि श्रुतउपदेश महान दिया था। आदिनाथ की स्तुतिकरके निजस्वरूप का ध्यान किया था |