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जैन पूजाँजलि धर्म को आज तक हमने जाना नहीं । राग की रागिनी हम बजाते रहे । अपनी शुद्धात्मा को तो माना नहीं । । पुण्य के गीत ही गुनगुनाते रहे ।।
समयसार के भाव को जो लेते उर धार । निज अनुभव को प्राप्तकर हो जाते भवपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र-ॐ ह्रीं श्री परमागम समयसाराय नमः ।
श्रीभक्तामरस्तोत्र पूजन जय जयति जय स्तोत्र भक्तामर परम सुख कारणम । जय ऋषभदेव जिनेन्द्र जय जय जय भवोदधितारणम् ।। जय वीतराग महान जिनपति विश्वबंध महेश्वरम् । जय आदिदेव सु महादेव सुपूज्य प्रभु परमेश्वरम् ॥ जय ज्ञान सूर्य अनन्त गुणपति आदिनाथ जिनेश्वरम् । जय मानतु ग मुनीश पूजित प्रथम जिन तीर्थेश्वरम् ॥ मैं भावपूर्वक करूँ पूजन स्वपद ज्ञान प्रकाशकम् । दो भेदज्ञान महान अनुपम अष्टकर्म विनाशनम् ।। ॐ ह्री श्री वृषभनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर सौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ। अवमम सन्निहितो भव भव वषट् । जन्म मरण भयहारी स्वामी, आदिनाथ प्रभु को वंदन । त्रिविध दोष ज्वर हरने को, चरणो मे जल करता अर्पण । ऋषभदवे के चरणकमल मे, मन वच काया सहित प्रणाम । भक्तामर स्तोत्र पाठकर, मैं पाऊँ निज मे विश्राम ।।।। ॐ ह्री श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि भव आताप विनाशक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वन्दन । भवदावानल शीतल करने चन्दन करता हूँअर्पण । ऋिषभ ॥२॥ ॐ ही श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चन्दनं नि ।। भव समुद्र उद्धारक स्वामी आदिनाथ प्रभु को वन्दन । अक्षय पद की प्राप्ति हेतु प्रभु अक्षत करता हूँ अर्पण। ऋषभ. ॥३॥ ॐ ही श्री वृषभनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि ।