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श्री समयसार पूजन एक दिन भी जी मगर त ज्ञान बनकर जी ।।
तू स्वय भगवान है भगवान बनकर जी ।। सर्व चार सौ पन्द्रह गाथाए प्राकृत भाषा मे जान । सारभूत निज समयसार काही अनुभव लू भव्य महान ॥२०॥ अमृतचन्द्राचार्य देव ने आत्मख्याति टीका लिखकर । कलश चढाये दो सौ अठहत्तर स्वर्णिम अनुपम सुन्दर ।।२१।। श्री जयसेनाचार्य स्वामी की तात्पर्यवृत्ति टीका । ऋषि मुनि विद्वानो ने लिक्खा वर्णन समयसार जी का ॥२२॥ ज्ञानी ध्यानी मुनियों ने भी तोरण द्वार सजाये हैं । समयसार के मधुर गीत गा वन्दनवार चढाये हैं ।।२३।। भिन्न भिन्न भाषाओ में इसके अनुवाद हुए सुन्दर । काव्य अनेको लिखे गये हैं समयसार जी पर मनहर ॥२४।। श्री कानजीस्वामी ने भी करके समयसार प्रवचन । समयसार मन्दिर पर सविनय हर्षित किया ध्वजारोहण ।।२५।। समयसार पढ सम्यकदर्शन ज्ञान चरित्र प्रगटाऊँगा । ८ "तिब्ब मद सहाव" क्षयकर- वीतराग पद पाऊँगा ॥२६।। पच परावर्तन अभाव कर सिद्ध लोक मे जा । काल लब्धि आई है मेरी परम मोक्ष पद पा ||२७।। भक्ति भाव से समयसार की पैने पूजन की है देव । कारण समयसार की महिमा उरमे जाग उठी स्वयमेव ।।२८।। नम समयसाराय स्वानुभव ज्ञान चेतनामयी परम । एक शुद्ध टकोत्कीर्ण, चिन्मात्र पूर्ण चिद्रप स्वयम् ।।२९।। नय पक्षों से रहित आत्मा ही है समयसार भगवान । समयसार ही सम्यकदर्शन समयसार ही सम्यकज्ञान ॥३०॥ ॐ ह्री श्री परमागम समयसाराय पूर्णाऱ्या नि । (८) स सा २८८-बन्धन के तीन मन्द स्वभाव को
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