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श्री समयसार पूजन दिध्य ध्वनि की अविच्छिन्न धारा में आती है यह बात ।
व स्वभाव आत्रय से होता है प्रारम्भ नवीन प्रभात ।। इसीलिए जिनवाणी का अध्ययन चितवन मैं कर लूँ । काल लब्धि पाकर अनादि अज्ञान निविडतम को हरलूँ ॥१६॥ नव पदार्थ छह द्रव्य काल वय सात तत्व को मैं जाने । तीन लोक पंचास्तिकाय छह लेश्याओ को पहचानें ।।१७।। षट् कायक का दया पालकर समिति गुप्तिव्रत को पानू । द्रव्यभाव चारित्र धार कर तप सयम को अपना लूँ ।।१८।। निज स्वभाव मे लीन रहू मैं निज स्वरुप मे मुस्काऊं। क्रम-क्रम से मैं चार घातिया नाश करूँ निज पद पाऊँ ॥१९॥ प्राप्त चतुर्दश गुणस्थान कर पूर्ण अयोगी बन जाऊँ।। निज सिद्धत्व प्रगट कर सिद्धशिला पर सिद्धस्वपद पाऊँ ॥२०॥ यह मानव पर्याय धन्य हो जाये मों ऐसा बल दो । सम्यकदर्शन ज्ञान चरित रत्नत्रय पावन निर्मल दो ॥२१॥ भव्य भावना जगा ह्रदय मे जीवन मगलमय कर दो । हे जिनवाणी माता मेरा अन्तर ज्योतिर्मय कर दो ॥२२॥ ॐ ह्री श्री जिनमुखोद् भव सरस्वतीदेव्यै पूर्णायं नि ।
जिनवाणी का सार है भेद-ज्ञान सुखकार । जो अन्तर मे धारते हो जाते भवपार ।।
इत्याशीर्वाद जाप्ययन्त्र ॐ ह्री श्री जिनमुखोद्भूत श्रुतज्ञानाय नम ।
श्री समयसार पूजन जय जय जय ग्रन्थाधिराज श्री समयसार जिन श्रुत बन्दन । कुन्दकुन्द आचार्य रचित परमागम को सादर वन्दन ।। बादशाग जिनवाणी का है इसमें सार परम पावन । आत्म तत्व की सहज प्राप्ति का है अपूर्व अनुपम साधन ।। सीमंधर प्रभु को दिव्य ध्वनि इसमे गूज रही प्रतिक्षण । इसको हृदयंगम करते ही हो जाता सम्यकदर्शन ।।