________________
१०२
जैन पूजांजलि जीवन तर तो आयु कर्म के बल पर ही हरियाता है।
जब यह आयु पूर्ण होती है तो पल में मुरझाता है ।। समयसार का सार प्राप्त कर सफल करूँ मानव जीवन । सब सिद्धों का वन्दन करके करता विनय सहित पूजन ॥ ॐ ही श्री परमागमसमयसाराय पुष्पाजलि क्षिपामि ।। निज स्वरूप को भूल आजतक चारोगति में किया प्रमण । जन्म मरण क्षय करने को अब निज मे करूँ रमण ।। समयसार का करूँ अध्ययन समयसार का करूँ मनन । • कारण समयसार को ध्याऊँ समयसार को करूं नमन ॥१॥
ॐ ह्रीं श्री परमागमसमयसार जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि ।। भव ज्वाला मे प्रतिफल जलजल करता रहा करुण क्रन्दन । निज स्वभाव ध्रुवका आश्रय लेकाटूगा जग के बधन । समय ।।२।। ॐ ह्री श्री परमागमसमयसाराय ससारतापविनाशनाय चन्दन नि । पुण्य पाप के मोह जाल मे बढी सदाभव की उलझन ।। सवरभाव जगा उर मे तो, भव समुद्र का हुआ पतन । समय ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री परमागमसमयसाराय अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि । कामभोग बन्धन की कथनी सुनी अनन्तो बार सघन । चिर परिचित जिनभुत अनुभूति न जागी मेरेअतर्मन समय ।।४।। ॐ ह्री श्री परमागमसमयसाराय कामबाणविध्वशनाय पुष्प नि । क्षुधा रोग की औषधि पाने का न किया है कभी जतन । आत्मभान करते ही महका वीतरागता का उपवन । समय ॥५॥ ॐ ह्री श्री परमागमसमयसाराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । भ्रम अज्ञान तिमिर के कारण पर मे माना अपनापन । सत्य बोध होते ही पाई ज्ञान सूर्य की दिव्य किरण । समय ॥६॥ ॐ ह्री श्री परमागमसमयसाराय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । आर्त रौद्रध्यानो मे पडकर पर भावो मे रहा मगन । शुचिमय ध्यान धूप देखी तो धर्मध्यान की लगी लगन। समय. ॥७॥ ॐ ही श्री परमागमसमयसाराय अष्टकर्म विनाशनाय धूप नि