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श्री कुन्द कुन्दाचार्य पूजन जीव शुबहै किन्तु विकारी है अजीव के संग पर्याय ।
जड़ पुदगल कर्मों की छाया में पाता भव दुख समुदाय । । सप्त भूमि अथवा निगोद आदि भव व्यथा मिटाऊँगा । जिन गुण सम्पत्ति हेतु महाव्रत धार सब राग नशाऊँग २६॥ सप्ताहार दोष मैं टालूँ सात विषय करो नित नाश । तर्जे सप्त पक्षामासो को पाऊँ सम्यक ज्ञान प्रकाश ॥२७॥ सप्त रत्ल का लोभ ना जागे ना चौदह रत्नो का राग । सप्तविंशति अधिक शताक्षरि मन्त्र जपूँ कर निज अनुराग ।।२८॥ मनुज देव पशु नर्क निगोदादिक मे दुख ही दुःख पाया । भव सन्ताप मिटाने का प्रभु आज स्वर्ण अवसर आया ।।२९।। सप्त तपो ऋद्धियाँ प्राप्त कर वीतरागता उर लाऊँ। पाप पुण्य पर भाव नाश हित श्री सप्त ऋषि को ध्याऊँ ॥३०॥ द्वादश तप की महिमा पाऊँ शुद्धातम के गुण गाऊँ । ग्रीष्म शीत वर्षा ऋतु मे भी निज आत्म लख मुस्काऊँ ।।३१।। विविध भाँति के व्रत मैं पार्ले निरतिचार हो शल्य रहित । प्रभो सिंह निष्क्रीडित आदिक तप व्रत परिसख्यान सहित ॥३२॥ केवलज्ञान प्रगट कर स्वामी चार घातिया नाश करूँ। सिद्ध सिला पर सदा विराजू आदिकाल मोक्ष प्रकाश वरूँ ॥३३॥ सप्त ईति और भीतिया पल मे हो जाये अवसान । अखिल विश्व मे मगल छाये सभी सुखी हो समतावान।।३४।। ॐ ही श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु आदि सप्त ऋषीश्वरेभ्यो पूर्णर्य नि ।
श्री सप्त ऋषीश्वर चरण जो लेते उर धार । अष्ट ऋद्धियाँ प्राप्त कर हो जाते भव पार ॥३५॥
इत्याशीर्वाद. जाप्यपत्र -ॐ ह्री श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु आदि सप्त ऋषोश्वरेभ्यो नमः।
श्री कुन्दकुन्द आचार्य पूजन कुन्द-कुन्द आचार्य देव के कमल चरण में कर नमन । कुन्द-कुन्द आचार्य देव की वाणी के उर धरूं सुमन ।।