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बैन पूजांजलि वीतराग विज्ञान शान का अनुभव ज्ञान चेतना लाता ।
कर्म चेतना उड जाती निज चेतन्य परम पद पाता ।। सप्त दश नियम नित पालन कर सप्ताक्षरी मन्त्र ध्याऊँ। सप्त नरक, सुर, पशु, नर गतिमय भव आताप नशाऊँगासुरमन्य।।२।। ॐ हीं श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, निचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, सप्त ऋषिश्वर ससारताप विनाशनाय चन्दन नि ।। सप्त सुगुण दाता के पाऊँ सप्त स्थान दान दूं नित्य । सप्त व्यसन तज निज आतम भज अक्षय पद पाऊँनिश्चयासुरमन्यु ॥३॥ ॐ ही श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, निचय, सर्वसुन्दर, जयवान, विनयलालस, जयमित्र, सप्त ऋषिश्वर अक्षय पद प्राप्तये अक्षत नि । सप्त शुद्धिपूर्वक सामायिक करूँत्रिकाल शुद्ध मन से । सप्त शील को पाल काम अरि नाश करूँनिज चिन्तन से।सुरमन्यु ।।४।। ॐ ह्रीं श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, अदि सप्त ऋषिश्वर कामबाण विध्वंसनाय पुष्प नि । सप्त कुम्भ व्रत चार शतक छयानवे महा उपवास करूँ। इनमे इकसठ करूंपारणा क्षुधा रोग फिर नाश करूँ ।।सुरपन्यु ॥५॥ ॐ ही श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, आदिसप्तऋषिश्वर क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि । सप्त नयो के द्वारा स्वामी वस्तु तत्व का करूँ विचार । मोहनाश हित सात प्रतिक्रमण करके पार्ले ज्ञानाचार ।।सुरमन्यु।।६।। ॐ ही श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, आदि सप्त ऋषिश्वर मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । सातभगस्यादूवाद मयी जिनवाणी की छाया पाऊँ । केवल्लान लब्धि को पाकर अष्ट कर्म पर जय पाऊँ ।।सुरमन्यु ॥७॥ ॐ ही श्रीसुरमन्यु, श्रीमन्यु, आदि सप्तऋषिश्वरेभ्यो अष्टकर्म विश्वसनाय धूप नि । सप्त समुद्घातो मे स्वामी केवलि समुद्घात पाऊँ । आठ समय पश्चात् मोक्ष पा पूर्ण शाश्वत सुख पाऊँ ।सुरमन्यु ॥४॥ ॐ ह्री श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, आदि सप्त ऋषिश्वरेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फल नि । सप्त परम स्थानो मे निर्वाण स्थान शिवपुर जाऊँ। पद अनर्थ से सादि अनन्त सिद्ध सुख पाऊँहर्षा सरमन्यु ॥९॥ ॐ ह्रीं श्री सुरमन्यु, श्रीमन्यु, आदि सप्त ऋषिश्वरेभ्यो अनर्थ पद प्राप्तये अन्य नि. ।