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जैन पूजांजलि घौठय तत्व का निर्विकल्प बहुमान हो गया उसी समय । भव वन में रहते रहते भी मुक्त हो गया उसी समय 41
पुण्यों की जब तक मिठास है पुण्यों की जब तक मिठास है वीतरागता नहीं सुहाती । जड़ की रुचि मे चिन्मूरति की रुचि कभी न भाती ।। चेतन के प्रति अकर्मण्य है और अचेतन के प्रति कर्मठ । निजभावों से है विरक्त परभावों की चिरपरिचित हठ ।। इन्द्रिय सुख मे अरे अतीन्द्रिय मुख की व्यर्थ कल्पना करता । अनुभव गोचर वस्तु सहज है रागातीत विराग न वरता ।। सहजभाव सपदायुक्त है तो भी इस पर दृष्टि न जाती । पुण्यो की जब तक पिठास है परममत्व की मादकता से तत्वाभ्यास नहीं हो पाता । पर में जागरुक रहता है निज में स्वय नहीं खो पाता ।। ज्ञायक होकर ज्ञान न जाना और ज्ञेय मे ही उलझा हे । ध्याना ध्यान ध्येय ना सपझा अत न अब तक यह सुलझा है ।। तर्क कुतर्क मान्यता मिथ्या भव भव में है इसे रुलाती । पुण्यो की जब तक मिठास है. महावीर का अनुयायी हे महावीर को कभी न माना । रागवीर ने हेय बताया इसने उपादेय ही जाना ।। पाप हेय है यह तो कहता किन्तु पुण्य में लाभ मानता । मोक्षमार्ग में दोनो बाधक यह सम्यक निर्णय न जानता ।। भूल भूल ही इम चेतन को भव अटवी में हे अटकाती । पुण्यो की जब तक मिठाम है साधक साध्य साधना साधन का विपरीत रूप है माना । स्वय साध्य साधन सब कुछ है इसे भूल भटका अनजाना ।। चिदानद निर्द्वट निजातम का आश्रय ले अगर बढे यह । तो निश्चय पुरुषार्थ सफल हो मुक्ति भवन सोपान चढे यह ।। ज्ञान पृथक है राग पृथक है ऐसी निर्मल सुमति न आती । पुण्यो की जब नक मिठास है वीतराग विज्ञान ज्ञान का अनुभव ज्ञान चेतना लाता । कर्म चेतना उड जाती है निज चैतन्य परम पद पाता ।। वीतराग निजमार्ग यही है केवल लो अपना अवलबन । रागपात्र को हेय जान निज भावों से काटो भवबंधन ।। तत्वों की सम्यक श्रद्धा से मोक्ष सपदा है मिल जाती । पुण्यों की जब तक मिठास है.