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श्री बाहुबली स्वामी पूजन जिस पड़ी निव भारम की अनुभूति होती है।
उस घड़ी सम्यक्त की सविभूति होती है ।। क्रोधित होकर भरत चक्रवर्ती ने चक्र चलाया है। तीन प्रदक्षिण देकर कर में चक्र आपके आया है ।।७।। विजय चक्रवर्ती पर पाकर उ वैराग्य जगा तत्क्षण । राजपाट तज ऋषभदेव के समवशरण को किया गमन ॥४॥ धिक धिक, यह ससार और इसकी असारता को धिक्कार । तृष्णा की अनन्त ज्वाला मे जलता आया है संसार IR॥ जग की नश्वरता का तुमने किया चितवन बारम्बार । देह भोग ससार आदि से हुई विरक्ति पूर्ण साकार ॥१०॥ आदिनाथ प्रभु से दीक्षा ले व्रत संयम को किया ग्रहण । चले तपस्या करने वन में रत्नत्रय को कर धारण ॥११॥ एक वर्ष तक किया कठिन तप कायोत्सर्ग मौन पावन । किंतु खटक थी एक हृदय में भरत भूमि पर है आसन २॥ केवलज्ञान नहीं हो पाया अल्पराग ही के कारण । परिषह शीत ग्रीष्म वर्षादिक जय करके भी अटका मन ॥१३॥ भरत चक्रवर्ती ने आकर श्री चरणों मे किया नमन । कहा कि वसुधा नहीं किसी की मानत्याग दो हे भगवन् ॥१४॥ तत्क्षण राग विलीन हुआ तुम शुक्ल ध्यान में लीन हुए । फिर अन्तरमुहूर्त मे स्वामी मोह क्षीण स्वाधीन हुए ॥१५॥ चार घातिया कर्म नष्ट कर आप हुए केवलज्ञानी । जय जयकार विश्व में गूजा जगती सारी मुस्कानी ॥१६॥ झलका लोकालोक ज्ञान में सर्व द्रव्य गुण पर्याये । एक समय मे भूत भविष्यत् वर्तमान सब दर्शायें ।।१७।। फिर अघातिया कर्म विनाशे सिद्ध लोक में गमन किया । पोदनपुर से मुक्ति हई तीनों लोको ने नमन किया ॥१८॥ महामोक्ष फल पाया तुपने ले स्वभाव का अवलम्बन । हे भगवान् बाहुबलि स्वामी कोटि कोटि शत् शत् वंदन ॥१९॥