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जैन पूजाँजलि पण्य मार्ग तो सदा बहिर्मुख धर्म मार्ग अतर्मुख है ।
पुण्यों का फल जगत भ्रमण दुख और धर्म फल शिव मुख है ।। नौ अक्षर का मत्र “णमो लोए सव्वसाहूण" ध्याऊँ । "ऐसो पच णमोयारो" जप सर्व पाप हर सुख पाऊँ ।।१२।। नव पद या नवकार पाँच पद का मै णमोकार ध्याऊँ। एक शतक सत्ताईस अक्षर का चत्तारि पाऊँ गाऊँ ॥१३॥ "चत्तारि मगलम् श्रेष्ठ मगल है जग मे परम प्रधान । “अरिहता मगलम्" पाठ कर गाऊँ निज आतम के गान।।१४।। "सिद्धामगलम' “साह मगलम' का मै भाव हदय भरलें । "केवलि पण्णत्तो धम्मो मगलम् स्वधर्म प्राप्त करवू ।।१५।। "चत्तारि लोगोत्तमा" ही सर्वोत्तम है परम शरण । "अरिहता लोगोत्तमा" ही से होगा भव कष्ट हरण ।।१६।। “सिद्धा लोगोत्तमा" सु “साहू लोगोत्तमा" परम पावन । "केवलि पण्णतो धम्मो लोगोत्तमा" मोक्ष साधन ।।१७।। "चत्तारि शरण पव्वज्जामि" का गूजे जय जय गान। “अरिहतेशरण पव्वज्जामि का हो प्रभु लक्ष्य महान!१८!! "सिद्धेशरण पव्वज्जामि" मोक्ष सिद्ध को मै पाऊँ । “साहूशरण पव्वज्जामि" शुद्ध भावना ही भाऊँ।।१९।। "केवलि पण्णत्तो धम्मो शरण पठवज्जामि" है ध्येय। पहामोक्ष मगल शिवदाना पाँचो परमेष्ठी प्रभु श्रेय ।।२०।। महामन्त्र नि काक्षित होकर शुद्ध भाव से नित ध्याऊँ । पच परम परमेष्ठी का सम्यक स्वरूप उर मे लाऊँ ।।२१। णमो कार का मन्त्र जपू मै णमोकार का ध्यान करूँ। महामन्त्र की महाशक्ति पा नाथ आत्म कल्याण करूँ॥२२।। अर्ह अहँ अहँ जपकर निज शुद्धातम करवू भान । नम सर्व सिद्धेभ्य जपकर मोक्ष मार्ग पर करूँ प्रयाण ।।२३।। ॐ ही श्री पचनमस्कारमत्राय अयं नि स्वाहा ।