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श्री पच बालयति जिन पूजन भ्रम से क्षुब्ध हुआ मन होता व्यग्र सदा पर भावों से । अनुभव बिना भ्रमित होना है जुडता नहीं विभावों से ।।
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जयमाला जय प्रभु वासुपूज्य जिन स्वामी मल्लिनाथ जय नेमि महान । जय श्री पार्श्वनाथ प्रभु जिनवर जय जय महावीर भगवान ॥१॥ पर परिणति तज निज परिणति से चारो गति हर हुए महान । पांचो तीर्थंकर प्रभु तुमने पाई पचम गति निर्वाण ॥२॥ अब वेराग्य जगे मन मेरे भव भोगो मे र नही । भाव शुभाशुभ के प्रपत्र मे ओर अधिक अब थम नही ।।३।। भक्ति भाव से यही विनय है निज अटूट बल दो स्वामी । चितामणि रत्नत्रय पाकर बन जाऊँ शिव पथ गामी ॥४।। में पाचो ममवाय प्राप्त कर निज पाचो स्वाध्याय करूं । पचम करण लब्धि को पाकर भेदज्ञान पुरुषार्थ करूँ ॥५।। वर्ण पच रस पत्र गध दो, स्पर्श अष्ट मुझमे न कही । पाच वर्गणा पुद्गल की पर्यायो से सबध नही ।।६।। पत्रभेद मिथ्यात्व त्यागकर समकित अगीकार करूँ। पत्र पाप तज एकदेश पाचो अणुव्रत स्वीकार करूँ ।।७।। पचेन्द्रिय के पच विषय तज पच प्रमाद विनाश करूं। पच महाव्रत पच समितिधर पचाचार प्रकाश करूँ ।।८।। पत्र प्रकार भाव आश्रव का बध नही होने पाए । पचोनर के वैभव का भी लोभ नही उर मे आए ॥९॥ सयम पाँच प्रकार ग्रहण कर मैं पात्रो चारित्र धर्में। पचम यथाख्यात चारित पा कर्मघातिया नाश करूँ ।।१०।। पचम भाव पारिणामिक से पाऊँ स्वामी पचम ज्ञान । पच परावर्तन अभाव कर पाऊँ पचम गति भगवान।।११।। पच बालयति तुम चरणो मे यही विनय है बारम्बार । सादि अनत सिद्ध पद पाऊँ नित्य निरजन शिवसुखकार ।।१२।। ॐ ह्री श्री वासुपूज्य मल्लिनाथ नमिनाथ पार्श्वनाथ महावीर पच बालयति जिनेन्द्राय पूर्णाध्यं नि ।