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श्री शान्ति कुन्थु अरनाथ जिन पूजन जन्म जरा मरणादि व्याधि से रहित आत्मा ही अद्वैत । परम भाव परिणामों से भी विरहत कहीं इसमें द्वैत ।।
मन भावन नैवेद्य सुहावन श्री चरणों में अर्पित है । क्षधा व्याधि नाशो हे स्वामी सादर ह्रदय समर्पित है ।। शान्ति ।।५।। ॐ श्री शातिकुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य नि अन्धकार नाशक जडदीपक श्री चरणो मे अर्पित है । मोह तिमिर हरलो हे स्वामी सादर ह्रदय समर्पित है । शान्ति ॥६॥ ॐ ही श्री शातिकुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय महिाधकार विनाशनाय दीप नि । महा सुगन्धित धूप निशकित श्री चरणों मे अर्पित है । अष्ट कर्म अरि ध्वस करो प्रभु सादर ह्रदय समर्पित है । शान्ति ।।७।। ॐ ह्री श्री शातिकुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय अष्ट कर्म विध्वशनाय धूप नि । पुण्य भाव का सारा शुभफल श्री चरणो मे अर्पित है । परम मोक्ष फल दो हे स्वामी सादर ह्रदय समर्पित है । शान्ति ॥८॥ ॐ ह्री श्री शातिकुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि । अष्ट द्रव्य का अर्घ अष्ट विधि श्री चरणो मे अर्पित है । निज अनर्घ पद दो हे स्वामी मादर ह्रदय समर्पित है । शान्ति ॥९॥ ॐ ही श्री शातिकुन्थु अरनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अयं नि ।
श्री शान्तिनाथ जी नगर हस्तिनापुर के अधिपति विश्वसेन नृप परम उदार । माता ऐरा देवी के सुत शान्तिनाथ मगल दातार ॥१॥ कामदेव बारहवे पचम चक्री सोलहवे तीर्थश । भरत क्षेत्र को पूर्ण विजयकर स्वामी आप हुए चक्रेश।।२।। नभ मे नाशवान बादल लख उर मे जागा ज्ञान विशेष । भव भोगों से उदासीन हो ले वैराग्य हुये परमेश ।।३।। निज आत्मानुभूति के द्वारा वीतराग अर्हन्त हुए । मुक्त हुए सम्मेद शिखर से परम सिद्ध भगवन्त हुए ॥४॥
ॐ ही श्री शातिनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मताज्ञाननिर्वाण पचकल्याण प्राप्ताय अध्य निर्वामीति ।