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श्री आदिनाथ भरत बाहुबलिजिन पूजन ऐसे मुनियों के दर्शन कर हृदय कमल खिल जाता है ।
जा अनादि से कभी न पाया वह शिव पथ मिल जाता है ।। पहंचे सिद्ध शिला पर म्वामी पाया सिद्ध स्वपद निर्वाण ।।१३।। यही कला यदि आ जाए प्रभु इस जीवन मे अब मेरे ।। फिर न लगाना मुझे पडेगा इस जग के अनन्त फेरे ॥१४॥ ॐ ह्री श्री भरत जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि ।
श्री बाहुबलि जी बाहुबली प्रभु के चरणो मे नमन करूँ मै बार बार । राज्य सपदा को तज तप का अवसर पाया भली प्रकार ॥१॥ छह खण्डो के विजयी भरत चक्रवर्ती जीते क्षण मे । राज्य अखड साधना करने जूझे कर्म रिसे रण मे ॥२।। घोर तपस्या का व्रत लेकर निश्चय सयम उर मे धार । एक वर्ष तप करके तुमने किया निर्जरा का व्यापार ॥३॥ पहिलेघाति कर्म जय कर के केवलज्ञान लब्धि पाई । फिर अघातिया जीते प्रभु ने मुक्तिरमा भी हाई ॥४।। पोदनपुर से मुक्त हुए प्रभु पाया शाश्वत पद निर्वाण । इन्द्रादिक देवो ने आकर गाए प्रभु के जय जय गान ।। हे प्रभु मेरे मकट हरलो मे अनादि से हूँ दुख युक्त । निज स्वभाव माधन की निधि दो हो जाऊंभव दुख से मुक्त ।।६।। ॐ ही श्री बाहुबली जिनन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि ।
जयमाला जिन गुण वर्णन कर सकूँ शक्ति नही भगवान । जिन गण मपत्ति प्राप्ति हित कीं स्वय का ध्यान ।।
छदताटक ऋषभदेव जिनवर को वन्दू बार बार मै हर्षाकर । ज्ञानभाव की प्राप्ति करूं मै भेद ज्ञान रस वर्षा कर ।। भरत मोक्ष गामी को बन्दू पूजन करके अष्ट प्रकार ।