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श्री आदिनाथ भरत बाहुबलिजिन पूजन भव का भार बढ़ाने वाला निश्चय बिन है यह व्यवहार । कितना भी सयम अगीकृत करले होगा कभी न पार ।।
अर्ध्यावलि आदिनाथ को नमन कर बन्दूँ भरत महेश । चरण बाहुबलि पूजकर वन्दूँ त्रय परमेश ।। प्रथक प्रथक त्रय अयं विनय सहित अर्पण करूँ। सकल विकारीभावना करूँ शुद्ध स्वभाव से ।।
श्री आदिनाथजी ऋषभदेव को नमन करूँ मै नाभिरायनृप के नदन । मरु देवी के राजदुलारे बारबार तुम्हे वन्दन ॥१॥ तुम सर्वार्थ सिद्धि से आए नगर अयोध्या जन्म लिया । इन्द्रादिक सुरनर सबने मिल जन्मोत्सव सानद किया ॥२॥ नदा आर सुनदा से परिणय कर लोकिक सुख पाया ।। नदा के सो पुत्र मुनदा ने सुत बाहुबली जाया नीलान्जना मरण लख तुमने वन मे जा वैराग्य लिया । ज्येष्ठ पुत्र थे भरत जिन्हे प्रभु तुमने राज्य प्रदान किया ॥४॥
ओपाधिक सारे विकार हर कर्म घाति अवसान किया । एक सहस्त्र वर्ष तप करके तुमने केवल्मान लिया ॥५॥ भरत क्षेत्र के भव्य प्राणियो को निश्चय सदेश दिया । खुला मोक्ष पथ जो कि बन्द था आत्म तत्त्व उपदेश दिया ।।६।। अखिल विश्व मे जल थल नभ मे प्रभु का जय जयकार हुआ । कोटि कोटि जीवो का प्रभु के द्वारा परमोपकार हुआ ॥७॥ मुक्त हुए कैलाश शिखर से प्रतिमा योग किया धारण । अष्टकर्म हर शिवपुर पहुचे जग के हुए तरणतारण ॥८॥ बार बार वन्दन करता हूँ बार बार मैं करूँ नमन । बार बार वन्दन करता हूँ तुमकों मैं आदिनाथ भगवान ॥९॥ ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि ।
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