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श्री पच बालयति जिन पृजन मुर्छा भाव नहीं है मुझ में सर्व शल्य स ह नि शल्या । आत्म भावना के अतिरिक्त नही है मुझमें कोई शल्य ।।
श्री पंच बालयति जिन पूजन जय प्रभु वासुपूज्य तीर्थकर मल्लिनाथ प्रभु नेमि जिनेश । जय श्री पार्श्वनाथ परमेश्वर जय जय महावीर योगेश ।। राग द्वषे हर मोह क्षोभहर मगलमय हे जिन तीर्थश । पच बालयति परम पूज्य प्रभु बाल ब्रहाचारी ब्रोश ।। ॐ ह्री श्री वासुपूज्य मल्लिनाथ, नेमिनाथ पाश्वनाथ महावीर पच बालयनि जिनेन्द्र अत्र अवतर-अवतर सवौषट् आवाहन | ॐ ही श्री वासुपूज्य मल्लिनाथ, नेमिनाथ पार्श्वनाथ महाबार पच बालयति जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन। ॐ ह्री श्री वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ पार्श्वनाथ, महावीर पच बालयति जिनेन्द्र अत्र मम मन्निहितो भव भव वपट पुष्पाजलि क्षिपामि । इस जल मे इतनी शक्ति नही जो अतरमल को धो डाले । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह पूर्ण शुद्धता को पा ले ।। वासुपूज्य श्री मल्लि नेमि प्रभु पारस महावीर भगवान । पाप ताप सताप विनाशक पच बालयति पूज्य महान ॥१॥ ॐ ह्री श्री पच बालयति जिनेन्द्रभ्या जम जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि । चन्दन में इतनी शक्ति नही जो अन्तर ज्वाला शान्त करे । शुद्धानम का जो अनुभव ले वह भव की पीडा शान्त करे ।।वामु ॥२॥ 3. ही श्री पच बालयनि जिनन्द्रध्या भवताप विनाशनाय चन्दन नि । तन्दुल में इतनी शक्ति नहीं जो निज अखण्ड पद प्रगटाये । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह निश्चित अक्षय पद पाय वासु ।।३।। ॐ ह्री श्री पच बालयनि जिनन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षत नि । पुष्पो मे इतनी शक्ति नहीं जो शील ग्वभाव प्रकाश करे । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह काम भाव नाश करे । । वासु ॥४॥ ॐ ही श्री पच बालयति जिनेन्द्राय कामबाण विध्वन्सनाय पुष्प नि । ऐसा नेवेद्य नही जग मे जो तृष्णा व्याधि मिटा डाले । शुद्धातम का जो अनुभव ले तो क्षुधा अनादि हटा डाले ।।वासु ।।५।। ॐ हीं श्री पच बालयति जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाम नैवेद्य नि ।