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जैन पूजांजलि ज्ञानानन्द स्वरूप स्वरस ही पीने का करना पुरुषार्थ । मनि पद पाने का उद्यम करता है सफल सकल परमार्थ ।।
निज स्वभाव रस प्राप्ति हेतु मैं भेदज्ञान का लें आधार । सम्यक चन्दन भेट चढाऊभव आताप सकल निर वार आदिनाथ।।२।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय ससारताप विनाशनाय चदन नि । स्वपर विवेक जगा अन्तर मे अक्षय पद को प्राप्त करूँ। सम्यक अक्षत भेट चढाऊँवेदनीय दुखत्वरित हरूँ ।।आदिनाथ ।।३।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षत नि । कामभाव विध्वस हेतु मै शील स्वभाव महान धरूं। सम्यक पुष्प भेट कर स्वामी पर विभाव अवसार करूँ ।।आदिनाथ ।।४।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ परत बाहुबली जिनेन्द्राय कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि । क्षधारहित मेरा स्वभाव है इसे नहीं जाना जिनराज । सम्यक चरु की भेट चढाऊँपाऊँस्वामी निजपद राज ||आदिनाथ ।।५।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवध नि । मोहभान्ति के महा शत्रु ने घेरा है मुझको दिनगत । सम्यक दीप चढाकर स्वामी पाऊँमै सम्यक्त्व प्रभात ॥आदिनाथ ॥६॥ ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । अष्टकर्म के बधन मे पड चारो गति मे भरमाया । सम्यक धूप चढाऊँइनके क्षय का अब अवसर आया ।।आदिनाथ ।।७।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूप नि । भवविषतरु फल खाए अब तक शाश्वत निज स्वभाव को भूल । सम्यक फल अर्पित करके प्रभु हो जाऊनिज के अनुकूल। आदिनाथ ।।८।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि । सम्यक अयं चढा कर स्वामी पद अनर्घ्य निश्चित पाऊँ ।, मेरी यही प्रार्थना है प्रभु फिर न लौट भव मे आऊँ ।आदिनाथ ।।९।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि ।