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जैन पूजांजलि जो चारित्र भ्रष्ट है वह तो एक दिवस तर सकता है । पर श्रद्धा से प्रष्टकभी भव पार नही कर सकता है।।
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विशेष - पूजायें जिनागम मे "जिनेन्द्र पूजन” पाँच प्रकार को बतायी है । इन्द्रो द्वारा की जाने वाली “इन्द्रध्वज पूजन" अष्टमद्धीप नन्दीश्वर मे इन्द्रो व देवो द्वारा की जाने वाली “अष्टान्हिका पूजन" चक्रवर्ती सम्राटो के द्वारा की जाने वाली "कल्पद्रुम पूजन", मुकुटबद्ध गजाओ द्वारा की जाने वाली “सर्वतोभद्र पूजन" व श्रावको द्वारा की जाने वाली “नित्यमह पूजन" है । इन पूजनो के अतिरिक्त इस सग्रह में श्री तीर्थकर पचकल्याणक वाहुबली, गौतम-स्वामी, कुन्दकुन्दाचार्य, समयसार, जिनवाणी, जैसी उत्कृष्ट पूजने भी सम्मिलित है । इन पूजनो के माध्यम से सभी आत्मार्थी बन्धु मोक्षमार्ग के पथिक बनकर अजर अमर अविनाशी पद को प्राप्त करे । यही भावना है।
श्री जिनेन्द्र पंचकल्याणक पूजन चोबीसो जिन के पाँचो कल्याणक शुभ मगलदायी । गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष कल्याणक पूजूं सुखदायी ।। ऋषभ अजित सभव अभिनदन सुमतिपय सुपार्श्व भगवत । चद्र सुविधि शीतलश्रेयाश जिन वासुपूज्यप्रभु विमल अनत ।। धर्म शाति कुन्थुअग्हजिन पल्लि मुनिसुव्रत नाम गुणवत । नेमि पार्श्व प्रभु महावीर के पाँचो मगल जय जयवन्त ।। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्रपचकल्याणक समूह अत्र अवतर अवतर सवौषट्। ॐ ह्री श्री जिनेन्द्रपचकल्याणक समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ही श्री जिनेन्द्रपचकल्याणक समूह अत्रमम सन्निहितो भव भव वषट् । शुभ्र नीर की तीन धार दे जन्म जरा मृतु हरण करूँ । सम्यक दर्शन की विभूति पा मोक्ष मार्ग को ग्रहण करूँ ।। जिन तीर्थकर के बतलाये रत्नत्रय को वरण करूँ। गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष पाचो कल्याणक नमन करूँ ।।१।। ॐ ही श्री जिनेन्द्र पचकल्याणकेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि ।