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जैन पूजॉजलि जो निवृत्ति की परम भक्ति में रहते हैं तल्लीन सदा । सिद्ध वधू के दिव्य मुकुट पर होते हैं आमीन सदा ।।
श्री मोक्ष कल्याणकअर्घ परम मोक्षकल्याण की महिमा अपरम्पार ।
अष्टकर्म को नाश कर नाथ हुए भवपार ।। गुणस्थान चौदहवाँ पाकर योगो का निरोध करते । अन्तिम शुक्ल ध्यान के द्वारा कर्म अघातिया भी हरते ।। अ,इ,उ,ऋ,ल उच्चारण मे लगता है जितना काल । तीन लोक के शीश विराजित ही जाते है प्रभु तत्काल ।। तन कपूर वत उड जाता है नख अरु केश शेष रहते । मायामयी शरीर देव रच अन्तिम क्रिया अग्नि दहते ॥ मगल गीत नृत्य वाद्यो की ध्वनि से होता हर्ष अपार । भव्य मोक्ष कल्याण मनाते सब जीवो को मगलकार।।५।। ॐ ही श्री तीर्थकर मोक्षकल्याणकेभ्यो आयं नि स्वाहा ।
जयमाला जिनवर पच कल्याणक की महिमा अगम अपार । गर्भ जन्म तप ज्ञान सह महामोक्ष शिवकार।।१।। वृषभादिक चोबीस जिनेश्वर के मगल कल्याण महान । गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष पाचो कल्याणक महिमावान ।।२।। श्री पचकल्याणक पूजन करके निज वैभव पाऊँ । सोलहकारण भव्य भावना मैं भी हे जिनवर भाऊँ ।३।। जिनध्वनि सुनकर मेरे मन मे रहा नहीं प्रभु भय का लेश । पूर्ण शुद्ध ज्ञायक स्वरुप मय एक मात्र है उज्ज्वल वेश ।।४।। सयोगी भावों के कारण भटक रहा भव सागर मे । जिन प्रभु का उपदेश सुना पर झिला नहीं निज गागर मे ।।५।। अवसर आज अपूर्व मिल गया प्रभु चरणों की पूजन का । सम्यकदर्शन आज मिला है फल पाया नर जीवन का ॥६॥