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जैन पूजांजलि पापों की जड पर प्रहार कर, पुण्य मूल भी छेद करो । मोक्ष हेतु सवर के द्वारा, आश्रव का उच्छेद करो ।।
उत्तम मार्दव उत्तम मार्दव धर्म ज्ञानमय वसु मद रहित परम सुखकार । मानकषाय नष्ट करता है विनय गुणो का है भण्डार ।। विनय बिना तत्वों का हो सकता न कभी सम्यक श्रद्धान । दर्शन ज्ञान चरित्र विनय तप बिना न होता सम्यक्ज्ञान ।। जहाँ मार्दव वहीं धर्म है वहीं मोक्ष नगरी का बर। उत्तम मार्दव धर्म हमारा विनय भाव की जय जयकथार ॥२॥ ॐ ह्री श्री उत्तमार्दव धर्मागाय अयं नि स्वाहा ।
उत्तम आर्जव उत्तम आर्जव धर्म कुटिलता से विरहित ऋजुता से पूर्ण । निज आतम का परम मित्र है करता माया शल्य विचूर्ण । लेशमात्र भी मायाचारी कुगति प्रदायक अति दुख कार । सरल भाव चेतन गुण धारी टंकोत्कीर्ण महा सख कार ।। शिवमय शाश्वत मोक्ष प्रदाता मगलमय अनमोल परम । उत्तव आर्जव धर्म आत्म का अभय रूप निश्चल अनुपमा॥३॥ ॐ ह्री श्री उत्तम आर्जवधर्मागाय अयं नि स्वाहा ।
उत्तम शौच उत्तम शौच धर्म सुखकारी मन वच काया करता शुद्ध । लोभ कषाय नाश कर देता समकित होता परम विशुद्ध । ऋद्धि सिद्धि का लोभ न किन्चित इसके कारण हो पाता । जो सन्तोषामृत पीता है वही आत्मा को ध्याता ।। शौच धर्म पावन मगलमय से हो जाता है निर्वाण । उत्तम शौच धर्म ही जग मे करता है सबका कल्याणा।४।। ॐ ही श्री उत्तमशौचधर्मागाय अर्घ्य नि स्वाहा ।