________________
-
-
-
श्री दशलक्षणधर्म पूजन भव बीजांकुर पैदा करने वाला, राग देव हरलू ।।
वीतरागबन ससम्यभाव से, इस भव का अभाव करलू ।। अगणित पुष्प सुवासित पाकर काम व्याधि न मिट पाई। अब कन्दर्प दर्प हरने को आज धर्म की सुधि आई ।। उत्तम ।।४।। ॐ ही श्री उतमक्षमादि दशधर्मागाय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं नि जड़ की रुचि के कारण अब तक निज की तृप्ति न हो पाई। सहज तप्त चेतन पद पाने आज धर्म की सुधि आई ।। उत्तम ।।५।। ॐ ही श्री उत्तमक्षमादि दशर्मागाय क्षुषारोगविनाशनाय नैवेच नि मिथ्या भ्रम की चकाचौंध मे दुष्टि शुद्ध न हो पाई। मोह तिमिर का अन्त कराने आजधर्म की सुधि आई ।। उत्तम. ।।६।। *ही श्री उत्तमक्षमादि दशधर्मागाय मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि । आर्त रौद्र ध्यानों में रहकर धर्म ध्यान छवि ना भाई । अष्ट कर्म विध्वंस कराने आज धर्म की सुधि आई ।। उत्तम ।।७।। ॐ ही श्री उत्तमक्षादि दशधर्मागाय अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि ।। राग हेय परिणति फल पाकर निजपरिणति ना मिल पाई। फल निर्वाण प्राप्त करने को आज धर्म की सुधि आई ।।उत्तम ॥८॥ ॐ ही श्री उत्तमक्षमादि दशधापाय महा मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि । चौरासी के क्रूर चक्र में उलझा शान्ति न मिल पाई। निज अमरत्व प्राप्त करने को आज धर्म की सुधि आई उत्तम. ॥९॥ ही श्री उत्तमक्षमादि दशधांगाय अनर्य पद प्राप्ताय अयं नि ।
उत्तम क्षमा उत्तम क्षमा धर्म है सुख का सागर तीन लोक में सार । जन्म मरण दुख का अभाव कर शीघ्र नाश करता संसार ।। क्रोधकषाय विनाशक दुर्गति नाशक पुनियो द्वारा पूज्य । व्रत सयम को सफल बनाता सुगति प्रदाता है अतिपूज्य ।। जहाँ क्षमा है वहीं धर्म है स्वपर दया का मूल महान । जय जय उत्तम क्षमा धर्म की जो है जग मे श्रेष्ठ प्रधान।।।
ही श्री उत्तम क्षमा मांगाव अन्य नि स्वाहा ।