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जैन पूजांजलि ज्ञानी स्वगुण चिन्तवन करता, अज्ञानी पर का चिन्तन । ज्ञानी आत्म मनन करता है, अज्ञानी विभाव मंधन ।।
उत्तम त्याग उत्तम त्याग धर्म है अनुपम पर पदार्थ का निश्चय त्याग । अभय शास्त्र औषधि अहार हैं चारों दान सरल शुभ राग।। सरल भाव से प्रेम पूर्वक करते है जो चारो दान। एक दिवस गृह त्याग साधु हो करते हैं निज का कल्याण।। अहो दान की महिमा तीर्थकर प्रभु तक लेते हैं आहार । उत्तम त्याग धर्म की जय जय जो है स्वर्ग मोक्ष दातार ॥८॥ ॐ ह्री श्री उत्तमत्यागधमांगाय अयं नि स्वाहा ।
उत्तम आकिंचन उत्तम आकिंचन है धर्म स्वरूप ममत्व भाव से दूर । चौदह अतरग दश बाहर के हैं जहाँ परिग्रह चूर।। तृष्णाओ को जीता पर द्रव्यों से राग नही किंचित। सर्व परिग्रह त्याग मुनीश्वर विचरें वन मे आत्माश्रित।। परम ज्ञानमय परमध्यानमय सिद्धस्वपद का दाता है । उत्तम आकिंचन व्रत जग मे श्रेष्ठ धर्म विख्याता है।।९।। ॐ ह्रीं श्री उत्तम आकिंचनधर्मागाय अयं नि स्वाहा ।
उत्तम ब्रह्मचर्य उत्तम ब्रह्मचर्य दुर्धर व्रत है सर्वोत्कृष्ट जग में । काम वासना नष्ट किये बिन नहीं सफलता शिवमग मे।। विषय भोग अभिलाषा तज जो आत्मध्यान में रम जाते। शील स्वभाव सजा दुर्मतिहर काम शत्रु पर जय पाते।। परमशील की पवित्र महिमा ऋषि गणधर वर्णन करते। उत्तम ब्रह्मचर्य के धारी ही भव सागर से तिरते ॥०॥ ॐ हीं श्री उत्तमब्रह्मचर्यघांगाय अयं नि स्वाहा ।