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जैन पूजान्चालि अति मासन मय जीवों को होता निश्चय प्रत्याख्यान ।
जीवों को हित रूप वही है इससे ही होता निर्वाण ॥ सम्यक पावन की शीतलता से भव भय हरवू । वस्तु स्वभाव धर्म है सम्यक ज्ञान आत्मा में भरलें तीन. ॥२॥ *ही श्री तीन लोक संबधी कृत्रिम मात्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि । सम्यक्चारित्र की अखंडता से अक्षय पद आदर लें। साम्यभाव चारित्र धर्म पा वीतरागता को वरल तीन ॥३॥ ऊहाँ श्री तीन लोक समधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षत नि । शील स्वभावी पुष्प प्राप्त कर काम शत्रु को क्षय करलें । अणुव्रत शिक्षावत गुणवत धर पंच महाव्रत आचरलूँ तीन. ॥४॥ ॐ ह्रीं श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो कामबाणविष्वशनाय पुष्प नि । संतोषामृत के चरु लेकर क्षधा व्याधि को जय करलूँ । सत्य शौचतप त्याग क्षमा से भाव शुभाशुभ सब हरलूँ तीन ।५।। ॐ ही श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्थ जिन बिम्बम्यो सवारोग विनाशनाय नैवेद्य नि । ज्ञान दीप के चिर प्रकाश से मोह ममत्व तिमिर हरलूँ । रत्नत्रय का साधन लेकर यह संसार पार करलूँ तीन ॥६॥ ॐ ह्री श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्थ जिन विम्बेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि ।। ध्यान अग्नि मे कर्म धूप धर अष्टकर्म अघ को हरलें । धर्म श्रेष्ठ मगल को पा शिवमय सिद्धत्व प्राप्त करतूं तीन ॥७॥ ॐ ही श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनवेत्यालयस्थ जिन बिम्बम्यों अष्टकर्म विध्वसनाय धूप नि । भेद ज्ञान विज्ञान ज्ञान से केवलज्ञान प्राप्त करलें । परम भाव सम्पदा सहजशिव महामोक्षफल को वरलूँ तीन. ८॥ ॐही श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्य बिन बिम्बयों मोक्षफल प्राप्त फल नि।