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श्री समस्त सिरक्षेत्र पूजन ज्ञानी को स्वामित्व राग का लेश नहीं है अंतर में।,
पूर्ण अखण्ड स्वभाव साधने का उत्साह भरा उर में।। रेवा तट पर रावण के सुत आदि मुनीश्वर को वन्दै । साढ़े पांच कोटि मुनियों को सादर सविनय अभिनन्,।।१५।। पावागढ पर साढ़े पांच कोटि मुनियों के पद बन्दै । रामचन्द्र सुत लव, पदनांकुश, लाडदेव के नृप वन्दै ॥१६॥ तारंगागिरि साढ़े तीन कोटि मुनियों को मैं वन्दें । श्री वरदत्तराय मुनिसागरदत्त आदि पद अभिनन्, १७॥ श्री सिद्धवरकूट सनत, मघवा चक्री दोनों वन्दै । कामदेव दस आदि ऋषीश्वर साढे तीन कोटि वन्दै ॥१८॥ मुक्तागिरि से साढे तीन कोटि मुनि मोक्ष गए वन्दूँ। पावागिरि पर सुवर्णभद्र आदिक चारो मुनि को वन्दूँ ॥१९॥ कोटि शिला से एक कोटि मुनि सिद्ध हुए उनको वन्, ।। देश कलिंग यशोधर नृप के पाँच शतक सुत मुनि वन्, ॥२०॥ श्री चलगिरि इन्द्रजीत अरु कुम्भकरण ऋषिवर वन्दै। कुन्थलगिरि पर श्री देशभूषण कुलभूषण मुनि वन्दै ॥२१॥ रेशदीगिरि वरदत्तादि पंच ऋषियो को मैं वन्दै । द्रोणागिरि पर गुरुदत्तादिक मुनियो को सविनय वन्दूँ ॥२२॥ पच पहाड़ी राजगृही से मुक्त हुए मुनिवर वन्दूँ। चरम केवली जम्बूस्वामी मथुरा मुक्ति भूमि वढूँ ।।२३।। पटना से श्री सेठ सुदर्शन मुक्त हुए उनको वन्, । कुण्डलपुर से मोक्ष गए श्रीधर स्वामी के पद वन्दूँ ॥२४॥ पोदनपुर से सिद्ध हुए श्री बाहुबली स्वामी वन्दूँ । भरत आदि चक्रेश्वर मुनियों की निर्वाण धरा वन्, ।।२५।। श्रवण, द्रोण, वैभार, बलाहक, विध्य, सह्म, पर्वत वन्यूँ । प्रवर कुण्डली, विपुलाचल, हिमवान क्षेत्रों को वन्दै ॥२६॥ तीर्थकर के सभी गणधरों की निर्वाण भूमि वन्दूँ। वृषभसेन आदिक गौतम, चौदह सौ उन्सठ ऋषि व ॥२७॥