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श्री कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजन
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विकार से मिन मारमा पूर्णतया अविकार । इस प्रकार इस भरत क्षेत्र के जीवों पर अनन्त उपकार । हे सीमन्धर नाथ आपके, करो देव मेरा उद्धार ॥२०॥ समकित ज्योति जगे अन्तर में होजाऊँ मैं आप समान । पूर्ण करो मेरी अभिलाषा हे प्रभु सीमन्धर भगवान।२१॥ *ही श्री सीमन्धा जिनेन्द्राय पूर्णाष्य नि स्वाहा ।
सीमन्धर प्रभु के चरण भाव सहित उरचार । मन बच तन जो पूजते वे होते भवपार ॥
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र-ॐ हो श्री सोमन्धर जिनेन्द्राय नमः ।
श्री कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजन तीन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालय को वन्दन । उर्ध्व मध्य पाताल लोक के जिन भवनों को करूँ नमन ।। हैं अकृत्रिम आठ कोटि अरु छप्पन लाख परम पावन । संतानवे सहस्त्र चार सौ इक्यासी गृह मन भावन ।। कृत्रिम अकृत्रिम जो असंख्य चैत्यालय हैं उनको वन्दन । विनय भाव से भक्ति पूर्वक नित्य करूँ मैं पूजन ।। ॐ ह्रीं श्री तीन लोक सबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्ब समूह अत्र अवतर अवतर सौपट | *ही श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्ब समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ हाँ श्री तीन लोक सबधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्ब समूह अत्र मम सन्निहितो भव भव
सम्यक, जल की निपल उज्जवलता जन्म जरा हरवू । मूल धर्म का सम्यक्दर्शन हे प्रभु हृदयंगम कर लें। तीन लोक के कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय वंदन कर लें। ज्ञान सूर्य की परम ज्योति पाभव सागर के दुख हर लूँ
ही तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम दिन चैत्यालयस्थ जिन विम्बेग्यो जन्मजामत्त विनाशनाय जलं नि ।