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श्री कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालय पूजन । २३ बाहर में संयोग दुखों के, अंतर में सुख का सागर ।
संयोगों पर दृष्टिन देते, पीते मुनि निज रस गागर ।। छादश विधितप अर्थ संजोकर जिनवर पद अनर्थ पालें। मिथ्या अविरति पंच प्रमाद कषाय योग बन्ध हरल तीन. ॥९॥
*ही श्री तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिनचैत्यालयस्थ जिन किम्बोम्यो अनर्थ पद प्राप्तये अस्य नि।
जयमाला इस अनन्त आकाश बीच में तीन लोक हैं पुरुषाकार । तीनो वातवलय से वेष्टित, सिंधु बीच ज्यों बिन्दु प्रसार ।।१।। उर्ध्व सात हैं, अधो सात हैं, मध्य एक राजू विस्तार । चौदह राजु उतग लोक है, उस नाड़ी त्रस का आधार ॥२॥ तीन लोक मे भवन अकृत्रिम आठ कोटि अरुछप्पन लाख। सतानवे सहस्त्र चार सौ इक्यासी जिन आगम साख ॥३॥ उर्ध्व लोक मे कल्पवासियों के जिन गृह चौरासी लक्ष । सतानवे सहस्त्र तेईस जिनालय हैं शाश्वत प्रत्यक्ष ॥४॥ अधो लोक में भवनवासि के लाख बहोत्तर, करोड सात । मध्यलोक के चार शतक अट्ठावन चैत्यालय विख्यात ॥५॥ जम्बूधातकी पुष्करा मे पंचमेरु के जिनगृह विख्यात । जम्बूवृक्ष शाल्मलितरु अरु विजयारध के अति विख्यात ।।६।। वक्षारों गजदतों इष्वाकारो के पावन जिनगेह । सर्व कुलाचल मानुषोत्तर पर्वत के वन्दै घर नेह ॥७॥ नन्दीश्वर कुण्डलवर द्वीप रुचकवर के जिन चैत्यालय । ज्योतिष व्यंतर स्वर्गलोक अरु भवनवासि के जिनआलय ॥८॥ एक एक मे एक शतक अरु आठ आठ जिन मूर्ति प्रधान । अष्ट प्रातिहायों वसु मंगल द्रव्यों से अति शोभावान ।।९।। कुल प्रतिमा नौ सौ पच्चीस करोड़ तिरेपन लाख महान । सत्ताइस सहस्त्र अरु नौ सौ अड़तालिस अकृत्रिम जान ।।१०।।