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नापसंद से कोई लेना-देना नहीं है। कोई कार्य करना हो तो उसका निश्चय करना पड़ता है और मनचाही चीज़ लेने जाते हैं, तो वह इच्छा है।
निर्णय के बजाय निश्चय में अधिक ज़ोर होता है। निश्चय में जिस अहंकार की ज़रूरत है, वह डिस्चार्ज अहंकार होता है।
कभी भोजन करने में अंतराय पड़ा? जैसे-जैसे आत्मवीर्य कम होता जाता है, वैसे-वैसे कषाय बढ़ते जाते
हैं।
आत्मवीर्य टूटता किस वजह से है? अहंकार की वजह से। आत्मवीर्य कम होता हुआ लगे तब ज़ोर-ज़ोर से पच्चीस-पचास बार बोलना, 'मैं अनंत शक्तिवाला हूँ।'
मोक्ष जाने में अनंत अंतराय हैं तो उनके सामने शक्तियाँ भी अनंत हैं! उल्टी के सामने सुल्टी शक्तियाँ भी हैं। दादाश्री का ज्ञान सूत्र है कि 'मोक्ष जाने में विघ्न अनेक प्रकार के होने से उनके सामने मैं अनंत शक्तिावाला
हूँ।
रोंग बिलीफ से आत्मा पर अंतराय पड़ गए! आत्मा की चैतन्य शक्ति आवृत हो जाती है, इन अनेक इच्छाओं से!
आत्मा की तमाम शक्तियाँ व अनंत ऐश्वर्य प्रकट होता है, ज्ञानी के सानिध्य से, उनकी कृपा से!
[ २.६ ] वेदनीयकर्म शरीर में तकलीफ आए तो वह वेदनीयकर्म का परिणाम है। वेदनीय कर्म दो प्रकार के हैं १. शाता (सुख-परिणाम) वेदनीय और २. अशाता (दुःख-परिणाम) वेदनीय। सर्दी, गर्मी, और भूख, प्यास लगे तो वह अशाता वेदनीय है। अस्पताल में जो बीमारियाँ हैं वे भी अशाता वेदनीय हैं। ये द्रव्यकर्म हैं।
शाता यानी कि सुख, उसे भी वेदनीय कहा है भगवान ने। ज्ञानी शाता
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