Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे भावसंजोगे ? भावसंजोगे-दविहे पण्णते, तं जहा-पसत्थे य अपसत्थे य। से किं तं पसत्थे पसत्थे-नाणेणं नाणी दंसणं दसणी, चरित्तेणं चरित्ती। सेतं पसथे। ले कि तं अपसत्थे ? अपसत्थे-कोहेणं कोही, माणेणं मागी,माधाए लायी, लोहेणं लोही। से तं अपसत्थे।से तं भावसंजोगे। ते तं संजोगेणं ॥सू० १८१॥
छाया-अथ किं तत् संयोगेन ? संयोगः चतुर्विध प्रज्ञप्तः, तद्यथा-द्रव्यसंयोगः, क्षेत्रसंयोगः, कालसंयोगः, भावसंयोगः। अथ कोऽसौ द्रव्यप्रयोगः ? व्यसंयोगः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सचितः अचित्तो मिश्रः। अथ कोऽसौ सचितः? सचित्त:
"से किं तं संजोगेणं' इत्यादि ।
शब्दार्थ-(से किं तं संजोगेणं ) हे भदन्त ! जो नाम संयोग से निष्पन्न होता है वह कैसा है ?
उत्तर-(संजोगे चउबिहे पण्णत्ते ) संयोग चार प्रकार का कहा गया है (तं जहा) वह इस प्रकार से है-(वसंजोगे खेत्तसंजोगे, कालसंजोगे, भावसंजोगे ) द्रव्य संयोग, क्षेत्र संयोग, कालसंयोग
और भाव संयोग। (से किं तं व्यसंजोगे ?) हे भदन्त ! द्रव्यसंयोग से जो नाम निष्पन्न होता है वह कैसा होता है ? (दव संजोगे तिविहे पण्णत्ते)
उत्तर-द्रव्य संयोग तीन प्रकार का होता है इसलिये इनके संयोग उत्पन्न नाम भी तीन प्रकार के होते हैं। (तं जहा) जैसे(सचित्ते अचित्ते मीसए) सचिस संयोग, अचित्त संयोग, मिश्र
" से कि त संजोगेणं " त्या
शहाथ-(से कि तं संजोगेण) मत ! २ नम सयोगयी निरूपन्न હોય છે તે કેવું છે?
उत्तर-(संजोगे चउविहे पण्णत्त) सया या प्रा२ने। ४ामा माये छ. (त'जहा) ते 20 प्रमाणे छ. (दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे, कालसंजोगे, भावसंजोगे) द्र०यस यस क्षेत्रसयस, ससये, भने मासयोग. (से कि त दव्वसंजोगे ?) 8 मत! द्रव्यसये गयी नाम नि०५-1 थाय ते ७ डाय छे ? (दव्वसंजोगे तिविहे पण्णत्त).
ઉત્તર-દ્રવ્ય સંગ ત્રણ પ્રક રને હોય છે. એથી એમના સંગ Fत्पन्न नामी ५९ ४२॥ हाय छे. (तंजहा) 243 (सचित्त अचित्ते
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