Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८१ संयोगस्वरूपनिरूपणम्
मूलम्-से किं तं संजोगेणं? संजोगे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे कालसंजोगे भावसंजोगे । से किं तं दध्वसंजोगे? दव्वसंजोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते अचित्ते मीसए । से कि तं सचित्ते ? सचित्ते गोहिं गोमिए, महिसीहि महिसिए, ऊरणीहिं-ऊरणिए, उट्टीहिं उट्टीवाले। से तं सचित्ते । से किं तं अचित्ते ? अचित्ते-छत्तेणं छत्ती, दंडेन दंडी, पडेण पडी, घडेग घडी, कडेण कडी, से तं अचित्ते । से किं तं मीसए ? मीसए-हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए रहेणं रहिए, नावाए नाविए, से तं मीसए। से तं दधसंजोगे से किं तं खित्तसंजोगे? खित्तसंजोगे-भारहे एरवए हेमवए एरण्णवए हरिवासए रम्मगवासए देवकुरुए उत्तरकुरुए पुखविदेहए अवरविदेहए। अहवा मागहए मालवए सोरट्टए मरहट्रए कुंकणए । से तं खेत्तसंजोगे। से किं तं कालसंजोगे?, कालसंजोगे-सुसमसुसमाए. सुसमाए,सुसमदूसमाए दूसमसुसमाए, दूससाए दूसमदूसमाए। अहवा पावसए वासारत्तए, सरदए हेमंतए वसंतए गिम्हए। से तं कालसंजोगे । से कितं भिन्नता हैं । तात्पर्य यह है कि-गौण नाम गुण की प्रधानता को लेकर सामान्यरूप से प्रवृत होता है। और यह नाम अवयव रूप विशेष को लेकर प्रवृत होता है । अतः गौण नाम के साथ इसके अभेद की आशंका करना निरर्थक है ॥ सू० १८० ॥ તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે ગૌણ નામ ગુણની પ્રધાનતાને લઈને સામાન્ય રૂપમાં પ્રવૃત્ત થાય છે અને આ નામ અવયવરૂપ વિશેષને લઈને પ્રવૃત્ત હોય છે. એથી ગળણ નામની સાથે એના અભેદની આશંકા નિરર્થક ગણાય. સાસુ ૧૮૦
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