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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८१ संयोगस्वरूपनिरूपणम् मूलम्-से किं तं संजोगेणं? संजोगे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वसंजोगे खेत्तसंजोगे कालसंजोगे भावसंजोगे । से किं तं दध्वसंजोगे? दव्वसंजोगे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्ते अचित्ते मीसए । से कि तं सचित्ते ? सचित्ते गोहिं गोमिए, महिसीहि महिसिए, ऊरणीहिं-ऊरणिए, उट्टीहिं उट्टीवाले। से तं सचित्ते । से किं तं अचित्ते ? अचित्ते-छत्तेणं छत्ती, दंडेन दंडी, पडेण पडी, घडेग घडी, कडेण कडी, से तं अचित्ते । से किं तं मीसए ? मीसए-हलेणं हालिए, सगडेणं सागडिए रहेणं रहिए, नावाए नाविए, से तं मीसए। से तं दधसंजोगे से किं तं खित्तसंजोगे? खित्तसंजोगे-भारहे एरवए हेमवए एरण्णवए हरिवासए रम्मगवासए देवकुरुए उत्तरकुरुए पुखविदेहए अवरविदेहए। अहवा मागहए मालवए सोरट्टए मरहट्रए कुंकणए । से तं खेत्तसंजोगे। से किं तं कालसंजोगे?, कालसंजोगे-सुसमसुसमाए. सुसमाए,सुसमदूसमाए दूसमसुसमाए, दूससाए दूसमदूसमाए। अहवा पावसए वासारत्तए, सरदए हेमंतए वसंतए गिम्हए। से तं कालसंजोगे । से कितं भिन्नता हैं । तात्पर्य यह है कि-गौण नाम गुण की प्रधानता को लेकर सामान्यरूप से प्रवृत होता है। और यह नाम अवयव रूप विशेष को लेकर प्रवृत होता है । अतः गौण नाम के साथ इसके अभेद की आशंका करना निरर्थक है ॥ सू० १८० ॥ તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે ગૌણ નામ ગુણની પ્રધાનતાને લઈને સામાન્ય રૂપમાં પ્રવૃત્ત થાય છે અને આ નામ અવયવરૂપ વિશેષને લઈને પ્રવૃત્ત હોય છે. એથી ગળણ નામની સાથે એના અભેદની આશંકા નિરર્થક ગણાય. સાસુ ૧૮૦ अ०५ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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