Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48ष्टमांम-ज्ञासा धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध488
हयगयरह जोह पवरकलियं चाउरंगिणींसगं सण्णाहह सेयणयंच गंधहत्यि परिकप्पेह ॥ तेवि तहेव जाव पच्चत्थिणंति ॥ ५६ ॥ तएणं से सेणिएराया जेणेव धारि. णीदेवी तेणामेव उवागच्छइ २ धारिणीदेवीं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! सगजिया जाव पाउसंसिरीपाउन्भूया. तण्णं देवाणुप्पिए ! एयं अकाल दोहलं विणेहिं ॥ ५७ ॥ तएणं सा धारिणीदेवी सेणिएणंरण्णा एवंवुत्तासमाणी हट्टतुट्ठ जेणामेव मजणघरं तेणामेव उवागच्छइ २ मजणघरं अणुपविस्सइ २ अंतो अंतेउरंसि व्हाया कयवलिकम्मा कयकोऊय मंगल पायच्छित्ता किंतेवर पाय
पत्त णेउर जाव आगासफलिह सप्पभं अंसयांणयत्या सेयणयं गंथहत्थि सेना तैयार करो और से चानक गंध हस्ती को तैयार करो, उस पुरुपने वेसा करके उन को उनकी आज्ञा पीछी दे दी ॥ ५६ ॥ पीछे श्रेणिक राजा धारणी देवी की पास आये और ऐसा बोले अहो देवानुप्रिय!
गौरव सहित यावत् वर्षाऋतु का वैक्रय कीया है. इस से तुम तुमारा अकाल मेघ का दोहल पूर्ण ॐ ॥५७ ॥ श्रेणिक राजा के ऐसा कहने पर वह धारणी देवी हृष्ट तुष्ट हुइ और जहां स्नान गृह था वहां
भाई, बहां आकर अंतःपुर में स्नान कीया, कुल्ले कीये. तीलमप्तादिक कीये पांव में नेपुर यावत् आकाश
उत्क्षिप्त ( मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
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