Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
18+
8+ षष्टमांग-माता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
जेणेव अभयकुमारे तेणेव उवागच्छइ २ ता अभयंकुमार एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए तवपियट्टयाए सगजिय, सफुसिय, सविजुया, दिव्वापाउससिरी विउविया, तंविणउणं देवाणुप्पिया! तब चुल्लमाउया धारणीदेवी अयमेवारूवं अकालदोहलं ॥ ५३ ॥ तएणं से अभयकुमारे तस्संदेवस्स पुज्वसंगइयरस सोहम्मकप्पवासिस्स अंतिए एयमटुं सोचाणिसम्मा हट्ट तुट्टे सयाओ भवणाओ पडिणिक्खमइ २ जेणामेव सेणियराया तेणामेवा उवागच्छइ २ करयलं अंजलिंकटु एवं वयासी-एवं
खलु ताओ ! ममपुब्बगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगजिय कीया इतना वैक्रेय करके वह देवता अभय कुमार की पास गया और उनको ऐसा दोलो-अहो । देवानुप्रिय ! मैंने तेरी मिति के लिये गरिव सहित विद्यत सहित व पानी के कणों महित दीव्य वर्षा ऋतु की लक्ष्मी का वैक्रेय कीया है इस से तेरी छठी माता का अकाल मेघका
पर्ण करो ॥५२॥ तब अपना पूर्ण परिचित सौधर्म दवलोकवासी देव से ऐसा सुनकर अभय कुमार
ष्ट हुवे और अपने भवन से नीकलकर श्रेणिक राजा की पास गये. वहां उन को अंजली जोडकर ऐसा बोले अहो तात! मेरे पूर्व परिचित सौधर्म देवलोक निवासी देवने गरिव विद्युत व पानी के कणों
Hit उत्क्षिप्त मेघकुपार ) का प्रथम अध्ययन 488
अर्थ |
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Personal & Private Use Only