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स्थानांग को सूक्तिया
तिरेपन
१५ संयम के चार रूप हैं - मन का संयम, वचन का संयम, शरीर का संयम और उपधि - सामग्री का सयम |
१६. पर्वत की दरार के समान जीवन मे कभी नही मिटने वाला उग्र क्रोव आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है ।
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पत्थर के खंभे के समान जीवन मे कभी नही झुकने वाला श्रहकार आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है ।
१६ कृमिराग अर्थात् मजीठ के रंग के समान जीवन मे कभी नही छूटने वाला लोभ आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है ।
२१
वास की जड़ के समान अतिनिविड - गाठदार दभ आत्मा को नरक गति की ओर ले जाता है ।
इस जीवन मे किए हुए सत् कर्म इस जीवन मे भी सुखदायी होते है । इस जीवन मे किए हुए सत्कर्म अगले जीवन मे भी सुखदायी होते है ।
फूल चार तरह के होते हैंसुन्दर, किन्तु गघहीन । गधयुक्त, किंतु सौन्दर्यहीन |
सुन्दर भी, सुगधित भी
न सुन्दर, न गधयुक्त ।
फूल के समान मनुष्य भी चार तरह के होते हैं ।
[ भौतिक संपत्ति सोन्दर्य है तो आध्यात्मिक सम्पत्ति सुगन्ध है । ]
२२. कुछ व्यक्ति सेवा आदि महत्वपूर्ण कार्य करते है, किंतु उसका अभिमान
नही करते ।
कुछ अभिमान करते हैं, किंतु कार्य नही करते । कुछ कार्य भी करते हैं, अभिमान भी करते हैं । कुछ न कार्य करते हैं, न अभिमान ही करते हैं ।