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महाभारत को सूक्तिया
दो सौ इक्यावन जिसके पास अपनी बुद्धि नहीं है, केवल रटन्त विद्या से बहुश्रुत होगया है, वह शास्त्र के मूल तात्पर्य को नहीं समझ सकता, ठीक उसी तरह, जैसे कलछी दाल के रस को नही जानतो ।
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___४५. असन्तोष ही लक्ष्मीप्राप्ति का मूल है ।
४६. रोग और यम (मृत्यु) इस बात की प्रतीक्षा नहीं करते कि इसने श्रेय
प्राप्त कर लिया है या नही । मतः जब तक अपने मे सामर्थ्य हो, बम,
तभी तक अपने हित का साधन कर लेना चाहिए । ४७. तपस्वी साधक तथा विद्वानो को कुत्ते के समान स्वभाववाले मनुष्य ही
सदा भूका करते हैं। ४८. लोम धर्म का नाशक होता है ।
४६ भय योर शोक के ससार मे सेंकहो-हजारो ही स्थान (कारण) है । परन्तु
ये मूढ मनुष्यो को ही दिन-प्रति-दिन प्रभावित करते हैं, ज्ञानी पुरुषो को
नही । . ५०. मन में दुख होने पर शरीर भी सन्तप्त होने लगता है, ठीक वैसे ही,
जैसे कि तपाया हुआ लोहे का गोला डाल देने पर घडे मे रखा हुआ
शीतल जल भी गर्म हो जाता है । ५१.. आसक्ति हो दुःख का मूल कारण है ।
५२. मृदुता (कोमलता, नम्रता) से कुछ भी असाध्य नहीं है।
५३ अयोग्य देश तथा अनुपयुक्त काल मे कुछ भी प्रयोजन (कार्य) सिद्ध नही
हो सकता, अत. कार्यसिद्धि के लिए उपयुक्त देश-काल की प्रतीक्षा करनी
चाहिए। ५४. क्षमा तेजस्वी पुरुषों का तेज है, क्षमा तपस्वियो का ब्रह्म है ।