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तीन सौ बारह
सूक्ति त्रिवेणी ६८ अभ्यास-वैराग्याभ्या तन्निरोधः ।
१।१२ ___६६ क्लेश-कर्म-विपाकाऽऽशयरपरामृष्टः पुरुप-विशेप ईश्वरः ।
-१।२४
१००. मैत्री-करुणा-मुदितोपेक्षाणा
भावनातश्चित्तप्रसादनम् ।
सुख-दुख-पुण्यापुण्य विषयाणां
-११३३
१०१. तप स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः ।
-२१
____१०२. अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्य-शुचि-सुखात्मख्यातिरविद्या ।
-२५ १०३. सुखानुशयी राग.।
-२७ १०४. दुःखानुशयी द्वाप.।
--२ १०५ हेयं दुःखमनागतम्। .
..-२०१६ १०६. अहिंसा-सत्याऽस्तेय-ब्रह्मचर्या ऽपरिग्रहा यमाः ।
-२०३० १०७. जाति-देश-काल-समयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ।
-२१३१
१. सभी धार्मिक व्यक्ति अहिसा आदि का कुछ न कुछ अगत. आचरण करते हैं, परन्तु योगी इनका पूर्ण रूप से आचरण करते हैं।
अमुक जाति के जीवो की हिसा करूँगा, अन्य की नही, यह जाति से अवच्छिन्न-सीमित अहिंसा है। इसी प्रकार तीर्थ मे हिंसा न करना, देशावच्छिन्न