Book Title: Sukti Triveni Part 01 02 03
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 750
________________ तीन सौ अठारह सूक्ति त्रिवेणी १२८ विवेकान्धो हि जात्यन्ध । -१४:४१ १२६. वरं कर्दमभेकत्वं, मलकीटकता वरम् । वरमन्धगुहाऽहित्वं, न नरस्या ऽविचारिता ।। -१४।४६ १३०. आपत्संपदिवाऽऽभाति विद्वज्जनसमागमे । -१६॥३ १३१. चित्तमेव नरो नाऽन्यद् । ---योग० उपशमप्रकरण ४।२० १३२. कृष्यन्ते पशवो रज्ज्वा मनसा मूढचेतसः। . -१४।३६ १३३ कर्ता बहिरकर्ता ऽन्तर्लोके विहर राघव ! -१८।२३ १३४. न मौादधिको लोके कश्चिदस्तीह दुःखदः । -२६५७ १३५. अहमों जगद्वीजम् । योग० निर्वाण प्रकरण, उत्तरार्ध ४३६ १३६ यन्नास्ति तत्तु नास्त्येव । , -१६१६ १३७. अज्ञातारं वर मन्ये न पुननिबन्धुताम् । -२११ १३८, अपुनर्जन्मने य. स्याद् बोधः स ज्ञानशब्दभाक् । वसनाशनदा शेषा व्यवस्था शिल्पजीविका ॥ --२२६४

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