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मनुस्मृति को सूक्तियो
दो सौ तिरानवे
७५ ब्राह्मग का तप ज्ञान है, ओर क्षत्रिय का तप दुर्वल की रक्षा करना है।
७६ जो दुस्तर है, दुष्प्राप्य है (कठिनता से प्राप्त होने जैसा है), दुर्गम है, और
दुष्कर है, वह सब तप मे साधा जा सकता है । साधना क्षेत्र मे तप एक दुर्लघन शक्ति है, अर्थात् तप से सभी कठिनतामो पर विजय प्राप्त की
जा सकती है। ७७. ज्ञान सत्त्व गुण है, रागद्वप रजोगुण है और अज्ञान तमोगुण है ।
०८. मनानी मूर्ख मे शास्त्र पढने वाला श्रेष्ठ है, पढ़ने वाले से शास्त्र को
स्मृति मे धारण करने वाला, धारण करने वाले से शास्त्र के मर्म को समझने वाला ज्ञानी, और ज्ञानी से भी उस पर आचरण करनेवाला
श्रेष्ठ है। ७६. आत्मा सर्वदेव स्वरूप है अर्थात् सभी दिव्य-शक्तियो का केन्द्र है। आत्मा
में ही सब कुछ अवस्थित है ।