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सूक्ति कम
तीन सौ सात
११. पाचारहीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नही कर सकते।
६२. योग, तप, दम, दान, सत्य, शौच, दया, श्रुत, विद्या, विज्ञान और
मास्तिक्य-ये माह्मण के लक्षण हैं।
६३. दीर्घ काल तक वैर भाव रखना, असत्य, व्यभिचार, पैशुन्य (चुगली),
निर्दयता-ये शूद्र के लक्षण हैं।
६४. माता के समान कोई देव नहीं है, पिता के समान कोई गुरु (शिक्षक)
मही है। ६५. पति ही स्त्री का एकमात्र गुरु है, और अतिथि सब का गुरु है ।
६६. जो दिया जाता है, और खा लिया जाता है, वही धन है।
६७. हितकारी प्रिय वचन बोलने वाला हो श्रेष्ठ वक्ता है, सम्मानपूर्वक
देने वाला ही श्रेष्ठ दाता है। विना अभ्यास (स्वाध्याय) के शास्त्र विष हो पाता है, और अभ्यास
फरने पर वही अमृत बन जाता है। ६६. ज्ञानयुक्त कर्म से ही मनुष्य स्थितप्रज्ञ होता है।
७०. बाप्त (यथार्थ माता द्रष्टा और यथायं प्रवक्ता) के उपदेश को शब्द
प्रमाण कहते हैं।
७१. इच्छा, ष, प्रयन्न, सुख, दुःख, शान-ये मात्मा के झापक लिंग
(लक्षण) है।
७२. चेष्टा (क्रिया), इन्द्रिय और अर्थ (सुख-दुःखादि) का आश्रय शरीर है।