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सूक्ति कण
तीन सौ एक
३१ मन हो समग्र जगत् है ।
३२. काम, क्रोध, श्वास, भय और निद्रा-ये शरीर के पांच दोष हैं।
संकल्परहितता, क्षमा, अल्पाहार, अप्रमत्तता और तत्वचिन्तन-ये उक्त दोषो को दूर करने के उपाय हैं।
३३ जिसने आसन जीत लिया, उसने तीनो लोक जीत लिए ।
३४ साधक के लिए प्रतिष्ठा सूकर के मल के समान है।
३५. बन्ध और मोक्ष के कारण दो ही पद हैं-'मम'--'मेरापन' बन्ध का
कारण है, और 'निर्मम'-'मेरा कुछ नहीं'-यह मोक्ष का कारण है।
३६ जिस प्रकार अलग-अलग रग-रूप वाली गायो का दूध एक ही रंग का
सफेद होता है, उसी प्रकार विभिन्न वेश एव क्रिया काण्ड वाले सप्रदायो का तत्वज्ञान दूध के समान एक जैसा ही कल्याणकारी होता है।
३७. जिस तरह दूध में घृत (घी) निहित होता है, उसी तरह हर एक प्राणी
के अन्दर चिन्मय ब्रह्म स्थित है । जिस तरह दूध को मथने से घो प्राप्त किया जाता है, वैसे ही मनन-चिन्तन रूप मथानी से मन्थन कर चिन्मय (ज्ञान स्वरूप) ब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है ।
३८. यदि तू अपकार करने वाले पर क्रोध करता है, तो क्रोध पर ही क्रोध
क्यो नहीं करता, जो सब से अधि अपकार करने वाला है।
३६. जब तक वासना क्षीण नही होती, तब तक चित्त शान्त नहीं हो
सकता ।
४० मन्दर में सव का परित्याग करके बाहर मे जैसा उचित समझे, वैसा
कर।