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सूक्ति
करण
१. कभी किसी को निन्दा नही करनी चाहिए ।
२. सूर्य (तेजस्वी आत्मा) ही सत्य का प्रसार कर सकता है।
३. मनुष्यो, उठो । जीवनशक्ति का स्रोत प्राण सक्रिय हो गया है। अन्धकार
चला गया है, आलोक आ गया है ।
४. सत्य की बुद्धि पापो को नष्ट कर डालती है ।
५ निन्दक लोग आखिर स्वयं ही निन्दित हो जाते हैं ।
६ देवता सोम छानने वाले पुरुषार्थी को चाहते हैं, सोते रहने वाले आलसी
को नही । आलस्य से मुक्त कर्मठ व्यक्ति ही जीवन का वास्तविक प्रमोद
आनन्द प्राप्त करते हैं। ७ जहां ज्योति निरन्तर रहती है, और जिस लोक मे सुख निरन्तर स्थित
है, उस पवित्र, अमृत, अक्षुण्ण लोक में मुझे स्थापित कीजिए।