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भगवद्गीता को सूक्तियां
१. जिस प्रकार देहधारी को इस देह मे वचपन के वाद जवानी और जवानी
के बाद बुढापा आता है उसी प्रकार मृत्यु होनेपर देही (मात्मा) को एक देह के बाद दूसरा देह प्राप्त होता रहता है । अतः धीर (ज्ञानी)
इस विषय मे मोह नही करते । २ हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दुख के देने वाले ये इन्द्रिय और
विषयो के संयोग उत्पत्ति-विनाश शील हैं, अनित्य हैं, इसलिए हे भारत !
तू इन सव को समभाव से सहन कर । ३. जो असत् है, उस का कभी भाव (अस्तित्व) नही होता, और जो सत् है
उसका कमी अभाव (अनस्तित्व) नही होता। जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रो को छोड कर नये वस्त्रो को ग्रहण करता है, वैसे ही देही (जीवात्मा) पुराने शरीरो को छोड़ कर नये शरीरो को ग्रहण करता रहता है।
४.
५. इस आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न पानी
गला सकता है, और न हवा सुखा सकती है।