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महाभारत को सूक्तिया
दो सौ पचपन
६५ (विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा-) राजन् ! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग
के भी ऊपर स्थान पाते हैं-एक शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने
वाला और दूसरा निर्धन होने पर भी दान देने वाला । ६६. ऐश्वर्य एव उन्नति चाहने वाले पुरुषो को निद्रा, तन्द्रा (ॐ धना), भय,
क्रोध, मालस्य तथा दीर्घसूत्रता (जल्दी हो जाने वाले काम में भी अधिक देर लगाने की मादत)-इन छह दुगुणो को त्याग देना चाहिए। राजन् | धन की प्राप्ति, नित्य नीरोग रहना, स्त्री का अनुकूल तथा प्रियवादिनी होना, पुत्र का आज्ञा के अन्दर रहना, तथा अर्थकरी (अभीष्ट प्रयोजन को सिद्ध करने वाली)विद्या-ये छह बातें इस मानवलोक में सुखदायिनी होती हैं ।
६७. राजन् । धन
काका आज्ञा के अन्दर
बातें इस मानव
६८. दुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अधिक न बोलना,
शक्ति के अनुसार दान और कृतज्ञता-ये आठ गुण पुरुष की ख्याति बढाते ।
६६. जो समय पर स्वय पके हुए फलो को ग्रहण करता है, समय से पहले
कच्चे फलो को नही, वह फलो से मधुर रस पाता है और भविष्य मे बीजो को वोकर पुनः फल प्राप्त करता है ।
७०. जैसे भौंरा फूलो की रक्षा करता हुआ ही उनका मधु ग्रहण करता है,
उसी प्रकार राजा भी प्रजाजनो को कष्ट दिए बिना ही कर के रूप मे उनसे धन ग्रहण करे।
७१. सत्य से धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या सुरक्षित रहती है, सफाई
से सुन्दर रूप की रक्षा होती है और सदाचार से कुल की रक्षा होती है।