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महाभारत को सूक्तिया
दो सौ सत्तावन ७२. संसार मे तीन मद हैं-विद्या का मद, धन का मद और तोमरा ऊँचे
कुल का मद । ये अहकारी पुरुषो के लिए तो मद हैं, परन्तु ये (विद्या,
धन और कुलीनता) ही सज्जन पुरुषो के लिए दम के साधन हैं । ७३. शीलस्वभाव वाला व्यक्ति सब पर विजय पा लेता है ।
७४. वाणो से विधा हुमा तथा फरमे से कटा हुआ वन (वृक्ष) तो फिर अकुरित
हो सकता है, किन्तु कटु वचनो के द्वारा वाणी से किया गया भयानक
घाव कभी नहीं भरता। ७५ शुभ कर्मों से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है, प्रगल्मता से वह बढती है,
चतुरता से जड जमा लेती है, और सयम से सुरक्षित रहती है ।
७६. जिस सभा मे बडे-बूढे नही, वह सभा नही, जो धर्म की बात न कहे,
वे बडे-बूढे नही, जिसमे सत्य नही, वह धर्म नही, और जो कपट से युक्त हो, वह सत्य नही है।
७७ जिसको बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता है ।
७८ शूर-वीर, विद्वान् और सेवाधर्म के ज्ञाता-ये तीन मनुष्य पृथ्वीरूप लता
से ऐश्वर्यरूपी सुवर्ण पुष्पो का चयन करते हैं ।
७६ बुद्धि से विचार कर किये हुए कर्म ही श्रेष्ठ होते हैं।
८०. ससार में व्यक्ति को जातिभाई ही तराते हैं और जाति-भाई ही डुबोते
भी हैं । जो सदाचारी हैं, वे तो तराते हैं, और दुराचारी डुबो देते हैं ।
५१. विनयभाव अपयश का नाश करता है, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है,
क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अन्त करता है।