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महाभारत को सूक्तियो
दो सौ तिरेपन ५५. सभी प्राणी अपने पुरुषार्थ एवं प्रयत्न के द्वारा ही जीवन धारण करते
हैं, जीवनयात्रा चलाते हैं। ५६. (नागराज के द्वारा ब्राह्मण को परिभाषा पूछने पर युधिष्ठर ने कहा-)
हे नागराज | जिसमे सत्य, दान, क्षमा, शील, क रता का अभाव, तप
और दया-ये सद्गुण दिखाई देते हो, वही ब्राह्मण कहा गया है । ५७. (युधिष्ठर को सद्गुणो की श्रेष्ठता के सम्बन्ध में नागराज ने कहा)
राजन् ! सत्य, इन्द्रियसयम, तप, दान, महिंसा और धर्मपरायणता-ये
सद्गुण ही सदा मनुष्यो को सिद्धि के हेतु हैं, जाति और कुल नहीं । ५८ विवेकहीन अजानी मनुष्यो का ऐश्वर्य नष्ट हो जाता है।
५६. सर्दी और गरमी, भय और अनुराग, सम्पत्ति और दरिद्रता जिस के
प्रारब्ध कार्य मे विघ्न नहीं डालते, वही व्यक्ति पण्डित कहलाता है ।
६०. विद्वान् पुरुष किसी चालू विषय को देर तक सुनता है, किन्तु शीघ्र ही
समझ लेता है । समझकर कर्तव्यबुद्धि से पुरुषार्थ मे प्रवृत्त होता है, किसी छिछली कामना से नहीं । विना पूछे दूसरे के विषय मे व्यर्थ कोई बात नही करता है । यह सब पण्डित की मुख्य पहिचान है ।
६१. जो अपने द्वारा भरण-पोषण के योग्य व्यक्तियो को उचित वितरण किए
बिना अकेला ही उत्तम भोजन करता है और अच्छे वस्त्र पहनता है,
उससे बढ कर और कौन क र होगा ? ६२. सत्य स्वर्ग का सोपान (सीढी) है ।
६३. क्षमा असमर्थ मनुष्यो का गुण है, तथा समर्थों का भूषण है।
६४. जिसके हाथ मे शान्तिरूपी तलवार है, उसका दुष्ट पुरुष क्या करेंगे ?