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सातक को सूक्तियो
एक सौ पन्द्रह ३८, फल वाले महान वृक्ष के पके हुए फन को नो तोडता है, उसको फल का
रस भी मिलता है और भविष्य मे फलने वाला बोज भी नष्ट नहीं होता। इसी प्रकार जो राजा महान वृक्ष के समान राष्ट्र का धर्म से प्रशासन करता है वह राज्य का रस ( अानन्द ) भी लेता है और उसका राज्य
भी सुरक्षित रहता है। ३६ हे राजन् । कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा की तरह असत्पुरुपो की मैत्री पतिदिन
क्षीण होती जाती है।
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हे राजन् । शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह सत्पुरुपो की मैत्री निरंतर वढती जाती है।
४१ वह मित्र अच्छा मित्र नहीं है, जो अपने मित्र को ही पराजित करता है।
४२ वह पुत्र अच्छा पुत्र नही है, जो अपने वृद्ध गुरुजनो का भरण पोपण नही
करता। ४३, पूजा (सत्कार) के बदले मे पूजा मिलती है, और वन्दन के बदले मे
प्रतिवन्दन । ४४. आज का काम आज ही कर लेना चाहिए, कौन जाने कल मृत्यु ही आ
जाए? ४५. जो व्यक्ति समय पर अपना काम कर लेता है, वह पीछे पछताता नही ।
४६. सभी वर्ग के लोग अधर्म का आचरण करके नरक मे जाते है, और उत्तम
धर्म का पाचरण करके विशुद्ध होते हैं ।
४७ मूरों की संगति करने वाला मूर्ख ही हो जाता है।
४८. वडे लोगो के यहा अपरिचित व्यक्ति को प्रतिष्ठा नहीं मिलती।