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यजुर्वेद को सूक्तियां
तिरानवे
६२. जिस की शान्त छाया (माश्रय-उपासना) मे रहना ही अमरत्व प्राप्त
करना है, और छाया से दूर रहना ही मृत्यु प्राप्त करना है, उस यनि
र्वचनीय परम चैतन्य देव की हम उपासना करें। ६३. मैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य,-अपने और पराये सभी जनो के लिए
कल्याण करने वाली वाणी बोलता हूँ ।
६४. अविनाशी सत्य से जन्म लेने वाले वृहस्पति । तुम हम लोगो को वह
चित्र (नाना प्रकार का) वैभव अर्पण करो, जो श्रेष्ठ गुणीजनो का सत्कार करने वाला और कातिमान् हो, जो यज्ञ (सत्कर्म) के योग्य और जनता मे प्रतिष्ठा पाने वाला हो । । और जो अपने प्रभाव से अन्य ऐश्वर्य को
लाने में समर्थ हो। ६५ पर्वतो की उपत्यकाओ मे और गगा आदि नदियो के सगम पर ही अपनी
श्रेष्ठ बुद्धि के द्वारा ब्राह्मणत्व (ज्ञान शक्ति) की प्राप्ति होती है ।
६६. मानव ! तू रत्नधा (अनेक सद्गुणरूप रत्नो को धारण करने वाला) है।
६७. देवो में दानादि गुणो से युक्त ही देव (दीप्तिमान) होता है ।
६८. हमारे शरीर पत्थर के समान सुदृढ हो ।
६९. ब्रह्म (ज्ञान) के लिए ब्राह्मण को और तप के लिए शूद्र को नियुक्त करना
चाहिए।
महीधर । ६. यद् धन जनेषु लोकेषु विभाति विविघं शोभते-महीधर । ७. यज्ञाः क्रियन्ते तादृशं धनं देहि-महीधर । ८. यद् धनं शवसा-बलेन दीदयत दापयति प्रापयति वा धनान्तर तद्घन देहीत्यर्थः । ६. देवो दानादिगुणयुक्तःउन्वट । १० पाषाणतुल्यदृढा-महीधर ।