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आरण्यक साहित्य को सुक्तिया
एक सौ सतत्तर
२६. ब्राह्मण का भोजन दूध है ।
३०. स्वाध्याय स्वयं एक तप है
३१. जितने भी देवता हैं, वे सब वेदवेत्ता ब्राह्मण (विद्वान्) मे निवास
करते है।
३२. आत्मा ही श्रेष्ठ है।
३३. हृदय कमल मे नियमित (एकान) हुए मन के द्वारा ही मनीषी (ज्ञानी)
सत्य का साक्षात्कार करते हैं।
३४ यह समग्र विश्व मेरे को सुखरूप हो, अर्थात् मेरे अनुप्ठेय कर्मो मे
विघ्नो का परिहार कर मनुग्रह कये। मैं मन मे मधुर मनन (संकल्प) करूंगा, सकल्प के अनन्तर मधुर कर्मों का प्रारंभ करूंगा, प्रारभ करने के अनन्तर समाप्तिपर्यन्त कर्मों का निर्वाह करूंगा, और इस बीच में सदैव साथियो के साथ मधुर भाषण
करता रहूंगा। ३६. हम (गुरु-शिष्य) दोनो का यश एक साथ वढे, हम दोनो का ब्रह्म
तेज एक साथ बढे ।
३७ सत्य का आचरण करना चाहिए, साथ ही स्वाध्याय और प्रवचन
भी । तप का अनुष्ठान करना चाहिए, साथ ही स्वाध्याय और प्रवचन भी ।
जनिष्ये प्रादुर्भावयिष्ये अनुष्ठातु प्रारप्स्ये । ७. प्रारभादूवं. .समाप्तिपर्यन्त निर्वहिष्यामि । ८. स्वाध्यायो नित्यमध्ययनम्, प्रवचनमध्यापन ब्रह्मयज्ञो वा ।